शासन अपने ऊपर
छिपी रहें दुनिया से भले ही
साफ नजर आतीं पर
मुझको अपनी गलतियां
रहता हूं उद्विग्न
दण्ड नहीं देता जब तक
गलतियों की खातिर अपने आप को
कोशिश करता है कई बार मन
खुद को बचाने की
देता है सफाई अपने पक्ष में
न्यायोचित नजर आयें
ताकि अपनी गलतियां
मन की इस चतुराई से
धोखा कई बार खा भी जाता हूं
अदण्डित रह जाता हूं।
ठहरे हुए पानी जैसा
सड़ने लगता पर जब मन
होता है अहसास तब शीघ्र ही
कहीं पर तो कमी कोई रह गई
पक्षपात अपने साथ हो गया
खींचता लगाम अपने मन की तब
बेहद निर्ममता से
सीमा से ज्यादा काम
लेता शरीर से
पहुंच जाता मौत की कगार तक
मुश्किल से लौट पाता जहां से।
चलती है इसी तरह
लुकाछिपी मौत से
करता हूं अपने ऊपर
शासन निष्ठुरता से।
रचनाकाल : 4 जनवरी 2021
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