बाधाओं के बीच
थक चुके हैैं पांव
जंगल में भटकता जा रहा हूं
रास्ता तो वही है
जो महापुरुषों ने बताया था
धुंधले बहुत हो चुके हैैं पदचिह्न लेकिन
हो रहा दूभर उन्हें पहचानना
शक्ति इतनी है नहीं अब
चल पडूूं बीहड़ वनों के बीच से
पथ बनाऊं नया उनके लिये
जो आ रहे पीछे
है कठिन यह फैसले की घड़ी
लेकिन लौटना अब चाहता ही नहीं
हालत में किसी भी
जान रखता हूं हथेली पर
बिना शक्तियों के ही
बढ़ रहा आगे घिसट कर
पार करता रास्ता अब इंच-इंच
जब तक रुक नहीं जाऊं हमेशा के लिये
उम्मीद है मन में
कि मंजिल पा सकूंगा एक दिन
रचनाकाल : 5 जनवरी 2021
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