मन की भाषा

बहुत नुकसान किया है मेरा वाणी ने
मौन साधना चाहा मैंने मगर
नहीं आसान रहा यह कभी
समझना होता जाता है मुश्किल
मन की भाषा को शब्दों में।

अभिव्यक्त नहीं कर पाया मैं
खुद को कभी सटीक
हमेशा कहना चाहा जो भी उसका
अर्थ लगाया अलग-अलग सब लोगों ने।

चाहता साधना इसीलिये अब चुप्पी
जो भी कहना हो अब
कहे आचरण खुद मेरा।

एकाग्र चित्त से चलता अपनी राह
शांति छाती जाती भीतर-बाहर
कुछ कहे बिना ही लोग
समझते जाते अब मन की भाषा।
रचनाकाल : 8 जनवरी 2021

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