अग्निस्नान
आग का दरिया धधक रहा है
अग्निपरीक्षा देनी ही होगी सबको
क्या होगा उसके बाद
बचेगा कौन, कौन डूबेगा
नहीं यह पता किसी को
शर्त मगर है यही
समर्पित किये बिना खुद को
पार उतरेगा कोई नहीं।
है मन में यही सुकून
धधकता भीतर दावानल जो
शायद शांत हो सके
बाहर की ज्वाला से
कचरा फैल चुका है
इतना भीतर-बाहर, दुनिया में
जरुरी है अब बेहद
करना अग्निस्नान।
मैं नहीं चाहता
मैली दुनिया में जीना
अवश्यम्भावी था अब
प्रकृति दिखाये रौद्र रूप अपना
यही कारण है स्वागत
करता मैं विकराल काल का
हरे हमारे भीतर-बाहर का तम सारा
बचे बस स्वत्व निखालिस
हम सबके भीतर का।
रचनाकाल : 3 जनवरी 2021
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