मौत
मौत का विकराल देखा रूप कल
दु:स्वप्न से भी था भयानक
एक पल में हो गया था खत्म सबकुछ
मिट गई रेखा हकीकत और मिथ्या की
सोच कर ही कांपता हूं
उस पिता की मन:स्थिति को
छिन गया जिसका युवा बेटा
हमेशा के लिये जीवन डराता रहेगा जिसको
कि मां की भूलती ही नहीं है
वह चीख मर्मांतक
जिसे जीना पड़ेगा जिंदगी मर कर
अचानक मायने कैसे बदल जाते
निरर्थक एक पल में
मौत कर देती सभी कुछ
कुछ नहीं बचता सुनाने
या कि सुनने के लिये
शब्द हो जाते निरर्थक
चीख रह जाती हमेशा के लिये
बस गूंजती, ब्रह्माण्ड में
होंठ थरथर कांपते हैैं
प्रार्थना में हाथ जोड़े।
रचनाकाल : 16 जनवरी 2021
Comments
Post a Comment