कविता और मनुष्यता


इतनी तेज है समय की रफ्तार
कि सोचा था स्थगित रखूंगा
फुरसत मिलने तक लिखना
पर बढ़ती ही जा रही है
विकास की रफ्तार
और क्रूर होता जा रहा है समय
कविता को पीछे छोड़ देने से।
इसलिए भागती-दौड़ती जिंदगी में
दौड़ते-भागते हुए ही सही
लिखना जारी रखना चाहता हूं कविता
दिखाती रहे ताकि यह आइना
बढ़ने न पाये भीतर क्रूरता
कि खत्म हो गई अगर मनुष्यता
तो बन जायेगा दुनिया का
सबसे हिंसक प्राणी यह आदमी
अंधी दौड़ में कथित विकास की
दुनिया कर डालेगा तबाह यह।
रचनाकाल : 30 दिसंबर 2020

Comments

  1. सुंदर , में में प्रश्न करती झकझोरती भाषा और डर के साथ समाधान कि आशा

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद

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