युद्ध और शांति काल
घनघोर अंधकार से
रात भर के संघर्ष के बाद
जब दीखने लगता है भोर का उजाला
थक कर सो जाता हूं
और जब खुलती है आंख
तो ढल रही होती है सांझ
और फिर शुरू हो जाती है लड़ाई
अंधेरे के साम्राज्य से।
सोचता हूं बार-बार
कि दिन के सुनहरे उजाले में
तेजी से बढ़ूंगा मंजिल की ओर
पर खत्म होते ही सारे संघर्ष
घेर लेती है नींद, हर बार।
इसी तरह सोते हुए
बीतता है शांतिकाल
घिरते ही रात काली
लड़ता हूं लड़ाई भीषण
टूटता ही नहीं यह क्रम
चला आ रहा जो सहस्राब्दियों से।
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