नाजुक और कठोर
बेशक मैं चाहता हूं
कविताएं कोमल हों
लेकिन नहीं सह सकता
जीवन की कठोरता से कटी हों
फूलों सी नाजुक जरूर हों
लेकिन हों इतनी मजबूत भी
कि चूर-चूर कर सकें चट्टानों को।
इसीलिये सहता प्रहार भीषण
झेलता हूं सारी कठोरता
उतनी ही भीषण पर
लड़ता हूं लड़ाई अपने भीतर भी
कि झुलस कर भी बंजर रेगिस्तान में
बन न सकूं कांटेदार कैक्टस
अपने जीवन रस से सींच कर
हर लूं सारी बंजरता
फूलों सी नाजुक और
पत्थर से भी मजबूत
लिख सकूं कविता।
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