उन्नति की परिभाषा


जब चूर बदन हो थक कर घोर परिश्रम से
तब लगता है दिन आज निरर्थक नहीं गया
मैं नहीं चाहता मिले सफलता तुरत-फुरत
बस मेहनत करता रहूं सदा घनघोर
कि मंजिल आती जब भी निकट नजर
चल पड़ता हूं मैं कठिन मार्ग की ओर।
हो भले सहज आरामदेह नीचे चलना
मैं गहन पर्वतों के शिखरों तक
आकर्षक इतना मार्ग बनाऊंगा
धारा जो अब तक चली आ रही
सुख-सुविधा में नीचे ही बहते जाने की
रुख मोड़ उसे मैं त्याग-तपस्या
के उत्तुंग शिखर तक लाऊंगा।
इसीलिए फल ठुकराता हर एक सफलता का
निरंतर करता हूं घनघोर परिश्रम
चाहता बदलना उस परिभाषा को
चली आ रही जो उन्नति की।

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