भरपाई
बुरे दिनों से मुझे कोई गिला नहीं
दूर से दीखते थे वे जितने भयावह
असल में नहीं थे उतने खतरनाक
दगा तो मुझे अच्छे दिनों ने दिया है
जब उपलब्ध थीं सारी सुविधाएं
और बढ़ सकता था मंजिल की ओर
रॉकेट की रफ्तार से भी ज्यादा तेजी से
ऐसा भरमाया पर मनोहारी मौसम ने
कि चला गया नींद के आगोश में
और खुली है आंख जब तो ढल चुकी है सांझ
रुकने का तो समय नहीं पर जरा भी
छाया हो अंधेरा चाहे घनघोर राहों में
बढ़ना ही होगा आगे कालिमा को चीर कर
करनी ही होगी उसकी भरपाई
समय जो गंवा दिया है, मनोहारी मौसम में।
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