प्रायश्चित
जैसे ही पूरी करता हूं एक बाधा दौड़
दूसरी सामने आ जाती है
जैसे अंतहीन हो श्रृंखला
खुश हूं कि मिला है ऐसा
सौभाग्यशाली जीवन
नीरस लगता जीना बाधाओं बिना
डर लगता है सुख-सुविधाओं से
हासिल की जाती हैैं जो
धरती के शोषण से
खड़ा होना चाहता हूं इसीलिये
मनुष्येतर जीवों के पक्ष में
कर सकूं परिमार्जन ताकि दोषों का
अपनी मानव जाति के।
Comments
Post a Comment