जीवन का प्रतिनिधि
दुनिया को शिकंजे में
और सोचता हूं हैरान होकर
कि क्यों नहीं देख पाया उसके
इस भयावह रूप को
जिंदगी सामान्य थी जब!
जानती है मौत भी यह अच्छी तरह
जीत नहीं सकती वह जीवन से
आमने-सामने की लड़ाई में
इसीलिये चली है यह कुटिल चाल
जाल उसने फेंका है दहशत का
भयभीत करने को दुनिया को
स्थापित करने को अपना साम्राज्य।
लेकिन नहीं है इतना आसान
खत्म करना जीवन को
तार-तार करने को
मौत के साम्राज्य को
लूंगा जन्म बार-बार
खत्म नहीं होने दूंगा दुनिया से
कहकहों-किलकारियों को
जीवन का प्रतिनिधि हूं मैं।
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