बेचैनी और शांति
भयानक गुंजार के साथ
होता है विस्फोट
और फैल जाता है मलबा दूर तक
तो क्या तहस-नहस हो चुकी है दुनिया?
सोचता हूं भयभीत होकर
पर जागता हूं हड़बड़ाकर तो पाता हूं
कि सब कुछ पूर्ववत् चल रहा है
नहीं बदला है दुनिया में कहीं भी कुछ।
होते हैैं इसी तरह बार-बार
विस्फोट मन के भीतर
असर नहीं पड़ता पर रंच भर
चलती ही जाती है दुनिया
अपनी रफ्तार से।
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