रूपांतरण
बेहद क्रूर है समय
पर नहीं चाहता
कि मेरी कविताओं में भी
आये यह क्रूरता।
सपनों में नाचती है मौत, पर
जीवन को चाहता हूं
भरना जीवन्तता से।
इसलिये नहीं शुरू की थी
रेगिस्तान की यात्रा
कि मैं भी हो जाऊं बंजर
भले ही करना पड़े
मौत का वरण, पर
भर देना चाहता हूं
धरती को जीवन रस से
पी रहा हूं इन दिनों
जहर भयंकर, पर
बदले में चाहता हूं देना अमृत।
आहट भी मौत की अब
दे रही सुनाई मधुर घंटियों सी
परियों के देश जैसे
लगते हैैं दु:स्वप्न
मरणांतक पीड़ा में
मिल रहा चरम सुख।
बदल रहे शब्दों के अर्थ, जैसे
भयानक दबाव सह
कोयला बदलता है हीरे में
बदलता है जहर जैसे अमृत में।
Comments
Post a Comment