लुकाछिपी


लुभाते हैैं मुझे
गहन गिरि गह्वर
खतरा उठा कर भी
चला जाता गहरे तक
मुश्किल से लौट पाता जहां से।
दरअसल बिखरी हैैं वहां
कविताएं अनमोल
चुनने का लोभ जिन्हें
खींच ले जाता मुझे।
खतरा तो बहुत है
लौटने की रहती नहीं गारंटी
मौत जकड़ लेती है पंजे में
मुश्किल से पीछा छुड़ाकर
लौटता हूं क्षत-विक्षत होकर।
इतनी मोहक हैैं पर कविताएं
रोक नहीं पाता खुद को
जाने से फिर-फिर।
खेलता हूं लुकाछिपी काल से
चुनता हूं कविताएं
गहन गिरि गह्वर से।

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