सही समय
पहले मैं नहीं जानता था
कविता लिखने का सही समय
संकट के दिनों में
भूल जाता था लिखना
और सुख के दिनों में
सूझता ही नहीं था कुछ
अब मैं जान गया हूं
कि कविता लिखने का समय तो
पीड़ा के चरम क्षणों में ही होता है।
पहले मैं लजीज व्यंजन खाता था
स्वाद नहीं आता था पर खाने में
अब मैं जान गया हूं
कि भोजन का सही समय तो
उपवास के बाद ही होता है।
डरता था चलने से पहले
कांटों भरी राह में
नीरस सी लगती थी जिंदगी
जान गया हूं पर अब
कि चलने का सही मजा तो
तलवार की धार पर ही होता है।
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