खजाने की खोज में


लम्बी कठिन यात्रा के बाद
पहुंचा जब तंग बीहड़ घाटी में
देने लगी है जवाब शक्ति।
लौटने को मुड़ता पर जैसे ही
मोती दूर दीखते चमकते हैैं
जैसे ही बढ़ता हूं आगे
बढ़ती ही जाती है चकाचौंध
दीखता खजाना बेशकीमती।
शक्ति लेकिन चुकती ही जाती है
डरता हूं रह न जाऊं
ऊपर पहुंचने से पानी के
इसी हड़बड़ाहट में
वापस लौट आता हूं
लेकिन ऊपर पहुंच कर पछताता हूं
क्यों न लेकर आ सका दो-चार रत्न!

आखिर उतरता हूं फिर नीचे
गहरी तंग घाटी में
दीखते हैैं फिर से रत्न चमकते
लौटने का फिर से डर लगता है
बढ़ता ही जाता हूं लेकिन
मिलने लगे हैैं अब राह में
बिखरे हुए रत्न
बीनते हुए उन्हें
बढ़ता ही जाता हूं
दीखता खजाना जहां
टूटती सी लग रही है सांस पर।

चकाचौंध बढ़ने के साथ ही
बढ़ता ही जा रहा अंधेरा
समझ नहीं पाता कि जागता हूं
या फिर  बेहोश होता जाता हूं
लेकिन इस हाल में भी
रत्नों की चाह में
बढ़ता ही जाता हूं आगे
गहरी तंग घाटी में समंदर के।

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