वायरस और मनुष्य


कौन सा लोक है यह
जिसमें नहीं दीखता कोई आदमजाद
कैक्टस जैसे काँटों वाले
वायरसों का ही दीखता है साम्राज्य।
तो क्या हो चुका है मनुष्यों का अंत
और अब वायरस ही करेंगे राज्य ?
प्रलय तो कोई आई नहीं
फिर कैसे बदल गया निजाम!
ढूंढ़ता हूँ अपनी मानव प्रजाति को चारों ओर
और भयभीत होकर पाता हूँ
कि बदल चुके हैं वे ही सब
काँटेदार वायरस में।
तो क्या यही थी हम मनुष्यों की नियति?
सिहर उठता हूँ यह सोच कर
और जाग उठता हूँ हड़बड़ा कर।
पर नींद खुलने के बाद भी
डराता रहता है देर तक
सपने में देखा था जो
मनुष्यों का वह काँटेदार रूप।

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