बहुरूपिये

रूप बदल आए हैं वे
पहले आते थे रात के अंधेरे में
और लूटपाट कर चले जाते थे
अब वे सेवक बन कर आए हैं
कई-कई दलों में आए हैं
जाओगे कहाँ तुम
जिसको भी वोट दो, चुनकर वही आएँगे
अब तो घर भी नहीं आएँगे तुम्हें लूटने
संसद भवन में बैठे-बैठे ही चट कर जाएँगे
कितना बचोगे तुम?
माहिर हैं वे रूप बदलने में
जरूरत पड़ने पर कवि भी बन जाएँगे।

Comments

  1. कड़वी सच्चाई : माहिर हैं वे रूप बदलने में
    जरूरत पड़ने पर कवि भी बन जाएँगे।

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