यात्रा

चल रहा हूं तलवार की धार पर
जहां जरा सा भी असंतुलन
खत्म कर देगा जीवन
पर इसके बिना कोई उपाय भी तो नहीं!
उतरना ही था नदी के तेज प्रवाह में
वरना किनारे पर बैठे-बैठे
बीत जाती जिंदगी।
अच्छी तरह मालूम था
शुरू करते हुए रेगिस्तान की यात्रा
कि जीवन भी ले सकता है, अंतहीन बंजर
पर पहुंचने के लिए लक्ष्य तक
इसे पार किये बिना कोई चारा भी तो नहीं!
वापस लौटने का तो सवाल ही नहीं
बढ़ते ही जाना है आगे अब
साधते हुए संतुलन
हिस्से में आये चाहे
मौत या जीवन
रचनाकाल : 23 अप्रैल 2020

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