विदाई गीत

पूरी दुनिया में मचा रखा है
कोरोना ने कोहराम
डरे हुए हैं सारे लोग
कि अगली बारी उनकी तो नहीं!
खत्म हो चुकी है शायद
प्रकृति की सहन सीमा
और उतर आई है वह बदला लेने पर।
निश्चित रूप से हम मनुष्य
साबित नहीं हुए हैं उसकी अच्छी संतान
सारे मनुष्येतर जीवों से हमने
किया है गुलामों जैसा व्यवहार
अपनी आरामतलबी के साधनों को ही
देते आए हैं सभ्यता और विकास का नाम
जिन्होंने सामंजस्य रखा अन्य जीवों से
और पूजते आए प्रकृति को
दुत्कारते रहे हम उन्हें जंगली कहकर
उजाड़ते रहे जंगल।
चरम सीमा पर पहुंच चुका है शायद
हम मनुष्यों का उत्पात
धरती चाहती है कुछ युगों का आराम!
इसलिये नहीं है शिकायत महामारियों से
अलविदा होना ही अगर नियति है
तो यही सही
फिर जन्म लेंगे हम, कुछ युगों बाद
जब पूरी हो जायेगी धरती की नींद
और कोशिश करेंगे बसाने की एक नई सभ्यता
जिसमें रह सकें सारे जीव
सामंजस्यपूर्ण सहअस्तित्व के साथ।
रचनाकाल : 18 मार्च 2020 

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