कविता के साथ-साथ


हो सकता है कि अच्छी न बने कविता
क्योंकि आँखों में नींद और सिर में भरा है दर्द
पर स्थगित नहीं हो सकता लिखना
लिखा था कभी
कि जीवन की लय को पाना ही कविता है
लय तो अभी भी टूटी नहीं
पर सराबोर है यह कष्टों और संघर्षों से
नहीं रोकूँगा अब इन्हें
कविता में आने से.
ओढ़ूँगा-बिछाऊँगा
रखूँगा अब साथ-साथ कविता को.
जानता हूँ कठिन है
इजाफा ही करेगी यह
कष्टों-संघर्षों में
लेकिन मंजूर है यह.
साथ रही कविता तो
भयानक लगेगी नहीं मौत भी
कविता के बिना लेकिन
रास नहीं आयेगा जीवन भी.

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