प्रकृति का अट्टहास


अद्भुत लय-ताल के साथ
नृत्य कर रही है प्रकृति
समझे थे लोग जिसे निर्जीव
दिखा रही है पूरी प्रचण्डता से वह
कि कूट-कूट कर भरी है उसमें जीवंतता
हम ही नादान थे जो बेजान समझकर
करते रहे उससे खिलवाड़
विजय पताका फहराकर
रौंदते रहे धरती-आकाश
बजाते रहे अपनी विजय दुंदुभि
अब गूंज रहा है चहुंओर
प्रकृति का अट्टहास
कर रही है भय से विस्मित वह
अपनी भयानक छटा से।
रचनाकाल : 25 अप्रैल 2020

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