निर्भय

शर्मिंदा हूं कि भयभीत होता रहा
मृत्यु की भयावहता से
और खुलकर नहीं जी सका जीवन
मेरे भले के लिए ही रचे थे
ईश्वर ने सारे विधान
पर निकालता ही रहा हरदम उनमें मीनमेख
कि ऐसा नहीं वैसा होना चाहिए था
समझ पा रहा हूं आज
कि जिसे विनाश समझता रहा
उसमें भी छिपी थी मेरी ही भलाई
कि मेरी बार-बार की नादानियों के बाद भी
करता रहा ईश्वर मुझे 
सही राह पर लाने की कोशिश
आजमाता रहा सारे तरीके
और मैं अभागा देता रहा उसी को दोष!
सौंपता हूं आज खुद को उसी के हाथों
स्वीकारता हूं उसके सारे विधानों को
होता हूं निर्भय सारे भयों से
रचनाकाल : 13 अप्रैल 2020

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