मृत्यु और सौंदर्य
इतने करीब से तो कभी नहीं देखा था मौत को
पर जिंदगी भी कहां लगी थी कभी इतनी खूबसूरत!
मरते जा रहे हैं लोग कोरोना वायरस से
और निखरती जा रही है प्रकृति लॉकडाउन से
समझ नहीं आ रहा कि भयभीत होऊं मौतों से
या अभिभूत होऊं प्रकृति के सौंदर्य से!
कहीं अभिशाप तो नहीं बन गए थे हम मनुष्य
मनुष्येतर जीव-जंतुओं के लिये!
इतनी सुंदर दुनिया को,
नरक तो नहीं बनाते जा रहे थे हम!
नाजायज नहीं है प्रकृति का प्रकोप
पर इतना रौद्र रूप दिखाने के बाद
चाहता हूं कि एक बार फिर से वह
हम मनुष्यों को मौका दे सुधरने का
शायद समझने लगे हैं इस बात को हम
कि प्रकृति के साथ सहयोग से ही संभव है जीवन!
रचनाकाल : 12 अप्रैल 2020
पर इतना रौद्र रूप दिखाने के बाद
चाहता हूं कि एक बार फिर से वह
हम मनुष्यों को मौका दे सुधरने का
शायद समझने लगे हैं इस बात को हम
कि प्रकृति के साथ सहयोग से ही संभव है जीवन!
रचनाकाल : 12 अप्रैल 2020
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