बेहद डरावनी है कुएं में ही भांग घुली होने की आशंका

 एक माननीय न्यायदाता के सरकारी आवास पर दिखे नोटों के जले-अधजले बंडलों के ढेर ने पूरे देश को सन्न कर दिया है. भ्रष्टाचार देश या दुनिया के लिए नई बात नहीं है और धनकुबेरों के घरों से इतनी नगदी बरामद होने की खबरें अक्सर आती रहती हैं जिसे गिनने में मशीनें तक थक जाती हैं. लेकिन कहावत है कि चादर अगर साफ हो तो दाग ज्यादा गहरे दिखते हैं. इसमें दो राय नहीं कि देश में अगर किसी भी विभाग की चादर सबसे ज्यादा साफ है तो वह न्यायपालिका ही है. विपक्ष या विरोधियों को भी और किसी पर विश्वास हो या नहीं, न्यायपालिका पर सबका भरोसा निर्विवाद है. इसीलिए न्यायपालिका को अनावश्यक आलोचनाओं से बचाव का सुरक्षा-कवच भी मिला हुआ है ताकि छिद्रान्वेषी तत्व उसकी गरिमा को गिराने की कोशिश न करें. 

लेकिन जब लोगों को लगने लगे कि कुछ छिपाने की कोशिश की जा रही है तो तरह-तरह की आशंकाएं जन्म लेने लगती हैं. छिपे हुए को जानने की मनुष्य के भीतर स्वाभाविक जिज्ञासा होती है, इसलिए अफवाहों को रोकने का सर्वश्रेष्ठ तरीका यह है कि संबंधित पक्षों द्वारा स्थिति को पहले ही पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया जाए और अगर कहीं अपराध हुआ है तो दंड का वरण भी स्वेच्छा से कर लिया जाए ताकि चमड़ी मोटी होने का इल्जाम न लगे. 

कहानी है कि एक राजा के दरबार में लगभग एक जैसे अपराध में दो आरोपियों को पेश किया गया. पहला आरोपी एक पेशेवर अपराधी था. राजा ने उसे दस कोड़े लगाने की सजा सुनाई. कोड़ों की मार झेलने के बाद भी वह खीसें निपोरता हुआ चला गया. वहीं दूसरा आरोपी एक इज्जतदार भला आदमी था. राजा ने उसे यह कहते हुए छोड़ दिया कि ‘आपसे तो ऐसे काम की उम्मीद न थी!’ दोनों के जाने के बाद दरबार में खुसर-फुसर होने लगी. एक दरबारी ने आखिर पूछ ही लिया, ‘महाराज, अपराध तो दोनों का एक जैसा था, फिर सजा में इतना फर्क क्यों?’ राजा ने तब अपने कुछ दरबारियों से कहा कि वे दूसरे आरोपी के घर जाकर पता लगाएं कि यहां से जाने के बाद वह क्या कर रहा है. वे जब उसके घर पहुंचे तो देखा, वह फांसी पर झूलने की तैयारी कर रहा था.  जैसे-तैसे उसको बचाया गया और राजा को बताया गया. राजा ने तब सवाल उठाने वाले दरबारियों को समझाया कि पेशेवर अपराधी की चमड़ी इतनी मोटी थी कि कोड़े मारे जाने की सजा के बाद भी बेशर्मी से हंसता रहा, जबकि भले आदमी ने सिर्फ इतना भर कहने से कि उससे ऐसी उम्मीद न थी, इतना अपमानित महसूस किया कि आत्महत्या के बारे में सोचने लगा. 

चमड़ी मोटी होने का ज्वलंत उदाहरण हम आज की राजनीति में देख रहे हैं. नई पीढ़ी को तो शायद पता भी नहीं होगा कि राजनेता भी कभी इतने संवेदनशील इंसान हुआ करते थे कि लोग उनका दिल से आदर करते थे. दरअसल आदर भी दो तरह का  होता है. एक भयवश किया जाने वाला और दूसरा सम्मानस्वरूप मन से पैदा होने वाला. राजनेताओं के प्रति आदर को हम भले ही पहली श्रेणी में रखें, न्यायपालिका से जुड़े लोग अभी तक आदर की दूसरी श्रेणी में ही आते रहे हैं. लेकिन सम्माननीय लोगों पर अगर दाग लगता दिखे तो उसे मिटाने की जिम्मेदारी भी स्वयं उनकी ही है. यह सोच कर ही डर लगता है कि न्याय प्रदान करने वालों का भी अगर भयवश आदर करने की नौबत आई तो आम आदमी विश्वास किस पर करेगा? और विश्वास अगर टूट गया तो समाज को अराजकता से कौन बचाएगा?   

(26 मार्च 2025 को प्रकाशित)

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