काल करे सो आज कर

बचपन में था मैं तेज बहुत पढ़ने में
लेकिन आया फिर ऐसा भी एक समय
कि समझ में आती नहीं गणित थी
बचने खातिर उससे, जबरन खुद को खेलकूद में
भरमाये रखने की कोशिश करता था।
उस चक्कर में कई साल गंवा डाले थे मैंने यूं ही
तब से आती है कोई भी बड़ी समस्या
उससे कतराने की जगह हमेशा
टकराने की ही कोशिश मैं करता हूं
यह समझ गया हूं जितना ज्यादा भागूंगा
उतना ही वह नुकसान मुझे पहुंचाएगी।
दरअसल मूंद कर आंख जिस तरह शुतुरमुर्ग
खुद को धोखा देने की कोशिश करता है
हम भी जीवन की जटिल
गुत्थियों से बचने की कोशिश में
उनको अधिकाधिक जटिल बनाते जाते हैं
संकट जब नन्हें पौधे जैसा होता है
आसानी से उसको उखाड़ सकते हैं, पर
जब अनदेखा करने की कोशिश करते हैं 
वह धीरे-धीरे वृक्ष बड़ा बन जाता है।

रचनाकाल : 3 दिसंबर 2024

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