दु:ख-कष्टों का सुख
लोग कहते हैं बात यह अक्सर
फूलते-फलते खूब अन्यायी
जो भी चलता है सत्य के पथ पर
झेलता कष्ट-दु:ख बहुत सारे
क्या यही है विधान ईश्वर का
है वो सचमुच ही इतना अन्यायी?
सत्य की राह में दृढ़ रहने को
दु:ख सहा राजा हरिश्चंद्र ने जो
एक वनवास झेल करके भी
फिर से सीता ने सहा निर्वासन
जिनको कहते मर्यादा पुरुषोत्तम
राम के मन पे क्या बीती होगी
क्या यही नियति सत्-जनों की है?
किंतु तपकर ही आग में जैसे
सोना पूरी तरह निखरता है
कष्ट-दु:ख मांजते मनुष्यों को
रहते सिद्धांत पर अडिग जो भी
याद इतिहास उन्हें रखता है
झेलना कष्ट सत्य की खातिर
मन को आनंद परम देता है
हो न जीवन में कोई मकसद तो
सुख भी आखिर दु:खी ही करता है!
रचनाकाल : 27-28 नवंबर 2024
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