प्रवाह के खिलाफ
सब्जी पसंद तो नहीं है मुझे
लौकी या कुम्हड़े की
लेकिन कहीं मिलती तो
खा जाता पहले ही
स्वाद ताकि ले सकूं
बाद में जो व्यंजन स्वादिष्ट हों
लेकिन लगता है मेजबानों को
बेहद प्रिय मेरी यह सब्जी है
जबरन परोसते हैं बार-बार।
दु:खों से लगाव तो
रहा नहीं मुझे कभी
लेकिन अपने हिस्से के
चुन-चुनकर दु:ख सारे
सहता हूं पहले ही
ताकि सुख भोग सकूं बाद में
लगता पर शायद यह ईश्वर को
दु:खों से मुझे विशेष स्नेह है
इसीलिये जबरन वह बार-बार
दु:ख मेरे हिस्से में देता है।
अद्भुत है लेकिन यह
खाते हुए बार-बार
लौकी या कुम्हड़े की
सब्जी अब लगती स्वादिष्ट है
आदत पड़ने के बाद दु:खों की
सुख मिलने लगता है
बरसों पहले जब मुझे
आदत लगी हुई थी सुखों की
दु:ख उसमें मिलता था
स्वादिष्ट पकवानों से
रोग तन में लगता था
तब से इच्छाओं का
उल्टा ही करता हूं
दीखता जो विष वह भी
अमृत हो जाता है
दाब जैसे कोयला सह
हीरा बन जाता है।
रचनाकाल : 21 सितंबर 2024
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