सुख-दु:ख का इस्तेमाल
मैं आम दिनों में तो अपने को
रख लेता हूं अनुशासित
पर हसरत होती है
कि चरम दु:ख या सुख में भी
डिगूं नहीं सिद्धांतों से
आंधियां उड़ा ले जायें नहीं
अभ्यास सतत यह करता हूं।
सुख-दु:ख की अतियों में मुझको
परमाणु बमों की तरह
असीमित शक्ति समाई दिखती है
जो क्षमता रखती सर्वनाश कर देने की
पर साध सकूं यदि उसको तो
परमाणु घरों की तरह
असीमित ऊर्जा भी मिल सकती है।
मुझको तो ऐसा लगता है
कोयला असीमित सहकर जैसे दाब
आखिरी में हीरा बन जाता है
शिव जैसी यदि क्षमता हो तो
हम हालाहल को भी अमृत में
परिवर्तित कर सकते हैं
सुख-दु:ख सबको आत्मोन्नति का
पाथेय बना सकते हैं।
रचनाकाल : 25 अगस्त 2024
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