दीर्घायु होने की लालसा और बीमारियों से सड़ता शरीर
प्राचीनकाल में एक राजा हुए थे, ययाति; जिन्होंने भोग-विलास की अपनी अतृप्त इच्छाओं को पूरा करने के लिए अपने बेटे से उसकी जवानी मांग ली थी. खबर है कि अमेरिका के 47 वर्षीय अरबपति ब्रायन जॉनसन ने 18 साल के युवा की तरह दिखने के लिए अपने 18 वर्षीय बेटे का प्लाज्मा अपने शरीर में इंजेक्ट करवाया है. बहुत समय पहले एक खबर आई थी कि एक शख्स ने अपने बायसेप्स बनाने के लिए उसमें जेल इंजेक्ट करवा लिया था, जिससे नसें फट गईं और उसकी जान पर बन आई थी. जॉनसन इतने अनाड़ी नहीं हैं और उनके पास दिमाग चाहे जितना हो, पैसा भरपूर है. तीस डॉक्टरों की टीम उन पर लगातार नजर रखती है. इसके बावजूद उनके कारनामे को भी डॉक्टरों ने जोखिम भरा बताया है.
भारत में ययाति जैसे राजा अपवाद ही रहे हैं. प्राय: सारे भारतीय अपनी संतानों में ही अपने जीवन की निरंतरता को देखते हैं. पश्चिमी देशों की एकल और भारत की संयुक्त परिवार की परंपरा का यह भी एक कारण रहा है. हालांकि अब ग्लोबलाइजेशन ने सबकुछ गड्ड-मड्ड कर दिया है और ययाति दुनिया में अकेला नहीं है, बल्कि कहना चाहिए कि उसकी अतृप्त इच्छाएं आज प्राय: सारी दुनिया की अतृप्त इच्छाएं हैं, वरना एक सार्थक जीवन जीने के लिए प्रकृति प्रदत्त उम्र कम नहीं होती. चींटी की उम्र कुछ हफ्ते या महीने की होती है और उसी में वह समूचा जीवन जी लेती है. कछुए का जीवनकाल सैकड़ों वर्षों का होता है और वह कछुआ चाल से जीता है. हम मनुष्यों के लिए भी प्राचीन भारतीय मनीषियों ने सौ वर्ष की आयु आदर्श ठहराई थी, जिसमें शुरू के 25 वर्ष ब्रह्मचर्य पालन व विद्याध्ययन, 25 से 50 वर्ष की उम्र गृहस्थाश्रम, 50 से 75 वर्ष की आयु वानप्रस्थाश्रम और उसके बाद की संन्यास के लिए निर्धारित थी. मृत्यु तब भी आती थी लेकिन वह फल के पक कर सूखने की तरह होती थी, अपनी आयु पूरी कर मरने वालों को लोग गाजे-बाजे के साथ अंतिम विदाई देते थे. आज दवाइयों के बल पर हम कुछ वर्षों के लिए अपना जीवनकाल भले ही बढ़ा लें, लेकिन केमिकल से पकाए गए फल के सड़ने की तरह, तरह-तरह की बीमारियों से बुढ़ापे में हमारा शरीर भी सड़ने लगता है. कहते हैं गांधीजी ने अपनी मृत्यु से एक दिन पहले अपनी पौत्री मनु से कहा था कि अगर मेरी मृत्यु किसी बीमारी से हो तो तुम घर की छत से चिल्ला-चिल्लाकर कहना कि मैं एक झूठा महात्मा था. उनके कहने का आशय शायद यही था कि एक स्वस्थ शरीर को अंत में पके फल की तरह सूखना चाहिए, सड़ना नहीं.
दीर्घायु बनाने की कोशिशों वाली थेरेपी जीवन को थोड़ा लम्बा तो बना सकती है लेकिन क्या हमेशा स्वस्थ रहने की गारंटी भी दे सकती है? फिल्म ‘आनंद’ में इसी नाम के किरदार ने कहा था, ‘बाबू मोशाय, जिंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं.’ ...आपका क्या कहना है?
(10 जुलाई 2024 को प्रकाशित)
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