मध्यम मार्ग
जीवन जब अतिशय सुखमय था
तब कोई बोझ न था मन में
चिंता का नाम-निशान न था
नीरस लगने पर लगा सभी कुछ
बंजर जैसा लगता मन
कुछ नया नहीं लिख पाता था।
दु:ख-कष्ट सहनसीमा से भी जब अधिक मिले
लगता था जैसे सुन्न हो गया है तन-मन
वीरानी छाई रहती थी
कितनी भी कोशिश करूं मगर
लिखने खातिर मन में विचार या
भाव न कोई आता था।
इसलिये हमेशा सम पर ही
रहने की कोशिश करता हूं
सुख ज्यादा जब आ जाता है
स्वेच्छा से उसमें दु:ख मिश्रित कर लेता हूं
बचने की कोशिश करता विषम परिस्थिति से
मैं मध्य मार्ग पर रहकर ही
अच्छी कविता लिख पाता हूं।
रचनाकाल : 26 जून 2024
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