ईमानदारों की दुनिया में कौन लोग हैं माफिया के मददगार ?
नीट परीक्षा के मैले होने के खुलासे के बाद जिस तरह धड़ाधड़ परीक्षाएं रद्द हो रही हैं, वह हतप्रभ करने वाला है. जो सड़न बाहर से मामूली दिखाई दे रही थी, क्या कोई सोच सकता था कि भीतर वह इतने बड़े पैमाने पर फैली हुई है? अभी कुछ दिन पहले एलन मस्क ने कहा था, ‘कुछ भी हैक किया जा सकता है.’ पेपर लीक माफिया शायद इससे भी ज्यादा आत्मविश्वास के साथ कह सकता है कि ‘कुछ भी लीक किया जा सकता है.’ जाहिर है यह लीक कांड चंद विद्यार्थियों तक सीमित नहीं रहा होगा वरना पेपर लीक माफिया की कमाई कैसे हुई होगी? ताज्जुब है कि इतने बड़े-बड़े कांड हमारे समाज के भीतर ही हो जाते हैं और शासन-प्रशासन या हम जागरूक नागरिकों को भनक तक नहीं लगती?
मुद्दा सिर्फ परीक्षा के पर्चों के लीक होने का नहीं है. बाहर से बर्फ के छोटे-छोटे दिखाई देने वाले टुकड़े भीतर से इतने विशाल आइसबर्ग हैं कि जानकर आंखें फटी रह जाती हैं. चोरी की गाड़ियों को आरटीओ की मदद से फर्जी नंबर के साथ सड़क पर उतारे जाने के जिन इक्का-दुक्का मामलों से जांच की शुरुआत हुई थी, उसके तार पूरे देश में इतने बड़े पैमाने पर फैले हुए मिल रहे हैं कि ईमानदार आदमी तो भयभीत ही हो जाए! यह हम किस दौर में जी रहे हैं कि अपने ही समाज के भीतर फैली व्यापक सड़न का हमें पता नहीं चल पाता! यौन शोषण के इक्का-दुक्का आरोपों की जांच होती है और पता चलता है कि नराधमों ने सैकड़ों-हजारों लड़कियों को अपना शिकार बनाया है! आरटीई प्रवेश घोटाले का पर्दाफाश होता है और गिरोह के इतने सुव्यवस्थित ढंग से काम करने का पता चलता है कि सरकारी तंत्र शरमा जाए!
लेकिन जिन समस्याओं-संकटों के बारे में हमें पता है उसमें ही हम कौन सा तीर मार ले रहे हैं! सब जानते हैं कि दुनिया का सबसे ऊंचा पहाड़ हिमालय खतरे में है. वहां के ग्लेशियर इतनी तेजी से पिघल रहे हैं कि हर साल नौ फुट पतले हो रहे हैं. ग्लोबल वार्मिंग समूचे पर्यावरण को तहस-नहस कर रही है लेकिन किसमें इतनी इच्छाशक्ति है कि इसे रोकने के लिए अपने हिस्से के ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कटौती करे?
बात जब दूसरों की आलोचना करने की हो, तब तो हम अपना कर्तव्य बखूबी निभा लेते हैं लेकिन जब निहित स्वार्थ आड़े आते हों तब भी क्या हम उतने ही कर्तव्यनिष्ठ रह पाते हैं! पेपर लीक माफिया की मदद से अपने बच्चों को परीक्षा में टॉप कराने वाले, फर्जी नंबरों वाली चोरी की गाड़ियों को सस्ते में खरीदने वाले या अपने बच्चों के एडमिशन के लिए आरटीई प्रवेश माफिया की मदद लेने वाले क्या दूसरी दुनिया के आदमी हैं?
कहीं हम शुतुरमुर्ग की तरह रेत में गर्दन दबाकर तो नहीं जी रहे हैं!
(26 जून 2024 को प्रकाशित)
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