बोझ नहीं, वरदान


लगता है मुझको कभी-कभी
करता हूं जैसे साफ-सफाई बाहर की
मन का भी कर लूं वैचारिक कम बोझ
ताकि कुछ जगह बने आधुनिक ज्ञान-विज्ञानों की।
पर जाने कितनी सदियों के
जैसे ही संचित अनुभव को
कोशिश करता डालूं कचरे के डिब्बे में
मोती की तरह चमकते हैं ढेरों विचार
अनदेखी करने से लगता था जो कचरा
अनमोल खजाने जैसा लगने लगता है
इसलिये बनाने की बजाय कोरा मन को
संचित करने की क्षमता अपनी बढ़ा सकूं
इस कोशिश में लग जाता हूं।

जब नये विचारों रूपी अपनी टॉर्च जला
संचित निधियों का करता गहन निरीक्षण
उससे होते जाते हैं प्रस्फुटित विचार नये
कुंती ने क्यों गिरधारी से
मांगा दु:ख का वरदान
लिखा क्यों तुलसी ने रामायण में
तपबल से दुनिया चलती है,
तपबल से महिमा पाते हैं
क्यों ब्रह्मा-विष्णु-महेश
झेलकर ही क्या चौदह वर्षों का वनवास
राम भगवान रूप बन पाये थे?
तेरह वर्षों तक पाण्डव वन में भटके थे
क्या इसीलिये वे युद्ध महाभारत का जय कर पाये थे?

अनगिनत सवालों पर ऐसे
जब करने लगता हूं विचार
होने लगता महसूस
कि संचित निधि के बल पर
होता जाता कई गुना समृद्ध
नजर आती थीं जो अति कठिन
सभी उन चुनौतियों का हल मुझको
अब सरल दिखाई पड़ता है।
रचनाकाल : 24-25 मई 2024

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