लालच की आग, अपराध बढ़ाती गर्मी और आभासी दुनिया में जीते युवा
देश में एक तरफ जहां सूर्यदेव आग बरसा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ हम मनुष्यों की लापरवाही से लगने वाली आग भी कहर ढा रही है. नैनीताल के जंगलों में लगी आग की खबर अभी ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि अपने फायदे के लिए दूसरों की जान से खेलने वालों के लालच की आग ने मासूम बच्चों सहित दर्जनों लोगों को लील लिया. आग चाहे राजकोट के गेम जोन में लगी हो(जिसमें बच्चों सहित दो दर्जन से अधिक लोग जिंदा जल गए) या दिल्ली के बेबी केयर सेंटर में भड़की हो(जिसने सात मांओं की कोख उजाड़ दी), प्रारम्भिक जांच बता रही है कि तबाही मानव निर्मित ही है. गेम जोन को जहां बिना जांच के ही एनओसी दे दी गई थी और फायर एनओसी तो थी ही नहीं, वहीं दिल्ली के बेबी केयर सेंटर में न आग बुझाने के लिए अग्निशामक यंत्र थे, न बच्चों की देखरेख के लिए योग्य डाॅक्टर. सेंटर का लाइसेंस भी मार्च 2024 में ही खत्म हो चुका था. कुछ ही दिन पहले हुए मुंबई के होर्डिंग हादसे में भी सैकड़ों लोगों की जान जाने के बाद पता चला कि वह अवैध था. ताज्जुब है कि इंसानी लालच की दहकती आग को देखने के बाद भी हमारे देश के कर्ता-धर्ता आगबबूला क्यों नहीं होते?
आग तो समाज में बढ़ते हिंसक अपराधों और लड़ाइयों ने भी लगा रखी है लेकिन यह खबर हमारे लिए सुकूनदेह हो सकती है कि विभिन्न अध्ययनों के अनुसार इन सबके लिए जिम्मेदार हम मनुष्य नहीं बल्कि बढ़ता तापमान है. कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि गर्म तापमान चिड़चिड़ापन और आक्रामक व्यवहार को बढ़ा सकता है. नेशनल इकोनाॉमिक रिसर्च ब्यूरो के एक अध्ययन के अनुसार अधिक तापमान के दिनों में अपराध 2.2 प्रतिशत और हिंसक अपराध 5.7 प्रतिशत बढ़े. पीएनएएस के एक रिसर्च पेपर में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ रहे तापमान से अफ्रीका में गृहयुद्ध का खतरा 54 प्रतिशत तक बढ़ सकता है. अमेरिका, ब्रिटेन में तो हीटवेव के कारण तलाक तक के मामले बढ़ जाने की बात सामने आई है. बेशक इन सारी समस्याओं के लिए बढ़ती गर्मी जिम्मेदार है, लेकिन गर्मी बढ़ने (ग्लोबल वार्मिंग) के लिए कौन जिम्मेदार है?
जिम्मेदार तो शायद समाज से अलग-थलग होकर इंटरनेट की आभासी दुनिया में जीनेवाले युवाओं के लिए भी हम ही हैं! संयुक्त परिवारों का चलन जब खत्म होने की शुरुआत हुई तो हम खुश थे कि अब एकल परिवार में हमें स्वच्छंद होकर जीने का मौका मिलेगा लेकिन शायद हमें पता नहीं था कि इसकी तार्किक परिणति युवाओं के समाज से अलग-थलग होकर जीने के रूप में ही होनी थी! हम जो आज करते हैं उसी से तो हमारा कल तय होता है. उदाहरण के लिए अपने बच्चों को हम वसुधैव कुटुम्बकम की शिक्षा दें तो कोई कारण ही नहीं है कि हमारे बुढ़ापे में वे कृतघ्न संतान साबित हों. कबीरदास जी ने तो सैकड़ों साल पहले ही कह दिया था कि ‘कबिरा आप ठगाइए, और न ठगिये कोय...’ फिर भी हम बच्चों को ठगाने की बजाय ठगने की कला सिखाते हैं और फिर बुढ़ापे में शिकायत करते हैं कि उन्होंने हमें ही ‘ठग’ लिया!
(29 मई 2024 को प्रकाशित)
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