जहं-जहं चरण पड़े संतन के, तहं-तहं बंटाढार...!

 महान वैज्ञानिक स्टीफन हाॅकिंग ने कभी कहा था कि ‘इंसानों को अपने अंत से बचने के लिए पृथ्वी छोड़कर किसी दूसरे ग्रह को अपनाना चाहिए.’ उन्होंने चाहे जिस संदर्भ में यह बात कही हो, परंतु जिस तरह से हम मनुष्य अंतरिक्ष में भी युद्ध लड़ने की अपनी क्षमता का विस्तार कर रहे हैं, उससे शायद मानव जाति के लिए कोई भी ग्रह सुरक्षित नहीं रह गया है! खबर है कि स्पेस में चीन और रूस के बढ़ते अभियानों से अमेरिका को लग रहा है कि उसकी सेना, जमीन पर स्थित उसके फौजी ठिकानों और अमेरिकी सैटेलाइट के लिए खतरा बढ़ गया है. इसलिए अमेरिकी प्रतिरक्षा विभाग - पेंटागन ने अंतरिक्ष में युद्ध लड़ने की क्षमता का विस्तार करने के लिए तेजी से काम शुरू किया है. अमेरिका की चिंता इन खबरों से ज्यादा बढ़ गई है कि रूस स्पेस में परमाणु हथियार बना रहा है और चीन ने उसकी सेना को निशाना बनाने के लिए स्पेस में कई साधन तैनात किए हैं. दुनिया के इन्हीं महाशक्ति कहे जाने वाले देशों ने अपने निहित स्वार्थों के लिए धरती को युद्ध का मैदान बना रखा है. अब जिस तरह से हम अंतरिक्ष को भी युद्ध क्षेत्र बनाते जा रहे हैं, हम इंसान बचें न बचें, लेकिन जिस-जिस ग्रह पर हमारे कदम पड़ेंगे, धरती की तरह उन-उन ग्रहों के खत्म होने की आशंका जरूर पैदा हो जाएगी! जिसने भी यह कहावत बनाई होगी कि ‘जहं-जहं चरण पड़े संतन के...’ क्या वह भविष्यदर्शी था?

  खत्म तो हमारा उत्साह भी जिस तरह से लोकतंत्र के पर्व को लेकर होता जा रहा है, वह गहरी चिंता का विषय है. चुनावों में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए अनेक दुकानदार, जौहरी, कारोबारी, होटल वाले आदि मतदान करने वालों को अपने-अपने संबंधित व्यवसायों में विशेष छूट दे रहे हैं. राजनेताओं से लेकर कलाकारों तक, शायद ही कोई ऐसा जागरूक नागरिक हो जो मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए मतदाताओं से वोट डालने की अपील न कर रहा हो. हो भी क्यों न, जनतंत्र आखिर जन की भागीदारी के बल पर ही तो जिंदा रह सकता है. फिर भी ‘जन’ जिस तरह वोट डालने के लिए घर से बाहर निकलने में आलस दिखा रहा है, वह अभूतपूर्व है. कहीं इसका कारण यह तो नहीं कि उसे एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई नजर आ रही हो या यह लोकोक्ति याद आ रही हो कि ‘जैसे नागनाथ वैसे सांपनाथ’?

नजर तो आजकल नेताओं का चेहरा भी साफ-साफ नहीं आ रहा है. चुनावों के बीच, प्रचार-दुष्प्रचार का कोहरा इतना घना हो गया है कि आम धारणा जिसके ईमानदार होने की हो, वह महाभ्रष्टाचारी नजर आता है और जिसे सुशासन का पैरोकार समझा जाता हो, वह विभाजन की तरफदारी करता दिखाई देता है. बेईमानों ने ईमानदारी की बांग इस तरह लगानी शुरू कर दी है कि जो सचमुच ईमानदार हैं, उनके बेईमान होने का शक पैदा होने लगा है. यह ठीक है कि कोहरा एक न एक दिन छंटेगा जरूर, लेकिन तब तक कहीं ईमानदारी का नकाब ओढ़कर बेईमान तो गद्दी नहीं हथिया चुके होंगे!

(22 मई 2024 को प्रकाशित)

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