मेहरबानी, विडंबना, बदनामी, हैरानी और बदनसीबी
सैकड़ों साल पहले रहीमदास जी ने कहा था-
‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुस चून।।’
हम मनुष्यों ने अपना पानी बचाकर रखा हो या नहीं, लेकिन प्रकृति ने जरूर बचा रखा है. खबर है कि मानसून इस बार भी खुशनुमा रहेगा यानी सामान्य से अधिक बारिश होगी. कोरोना काल से ही प्रकृति किसानों का साथ देती आ रही है, जिससे सरकार अस्सी करोड़ लोगों का मुफ्त में पेट भरने में सक्षम हो पा रही है. इस साल भी अनाज की बंपर पैदावार से महंगाई नियंत्रित रहने की उम्मीद है. कहा जा सकता है कि प्रकृति हम पर मेहरबान है.
लेकिन हम मनुष्य भी क्या प्रकृति पर मेहरबान हैं? रूस की यूक्रेन और इजराइल की गाजापट्टी पर बम-गोलों की बरसात में मानो कोई कसर रह गई थी कि ईरान ने इजराइल पर धुआंधार मिसाइलें दाग दीं! सबके पास अपने-अपने तर्क हैं, सब अपनी-अपनी रक्षा करना चाहते हैं, लेकिन पर्यावरण की रक्षा कौन करेगा? यह कितनी बड़ी विडंबना है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से आने वाली प्राकृतिक आपदाओं और कोरोना जैसी महामारियों का डर भी हम मनुष्यों को भयावह युद्धों का नंगा नाच खेलने से रोक नहीं पाता!
विडंबना तो हम मतदाताओं की चुनाव आयोग द्वारा 45 दिनों में 4658 करोड़ रुपए की जब्ती किए जाने में भी झलकती है, जिसमें नगदी, ड्रग्स और मुफ्त उपहार शामिल हैं. कहा जा रहा है कि यह आंकड़ा 75 साल के चुनावी इतिहास में सबसे ज्यादा है; मतलब हम आम जन दिनोंदिन ज्यादा भ्रष्ट होते जा रहे हैं! नेता तो वोट खरीदने के लिए बदनाम होते ही हैं, लेकिन हम मतदाताओं को भी क्या बिकने के लिए बदनाम नहीं होना चाहिए? इतनी बड़ी जब्ती आखिर और क्या दर्शाती है?
बदनाम तो अधिकारी भी कम नहीं होते, आम और खास लोगों में फर्क करने के लिए. ऐसे में यह खबर सुकून देने वाली प्रतीत होती है कि तमिलनाडु के नीलिगरि में निर्वाचन अधिकारियों ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को लेकर आए एक हेलिकॉप्टर की सोमवार को तलाशी ली. आम चुनाव के इस दौर में जब देश भर में यात्रा करने वाले आम नागरिकों की तलाशी ली जा रही है तो आखिर नेताओं को ही इससे क्यों बख्शा जाए! पर हैरानी इस बात पर होती है कि नेताओं की सत्ता में रहने के दौरान तलाशी क्यों नहीं होती?
हैरानी तो रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव के इस कथन से भी कम नहीं हो रही कि वर्ष 2029 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की स्थिति में भी भारत एक गरीब देश बना रह सकता है, इसलिए इस बात पर खुशी मनाने का कोई कारण नहीं है. तो क्या अर्थव्यवस्था के बढ़ने और आम आदमी के खुशहाल होने के बीच कोई संबंध नहीं है और देश के अमीर बनने के बाद भी वह अमीरी चंद हाथों तक ही सिमट कर रह जाएगी? देश आगे बढ़े तो सबसे ज्यादा खुश आम आदमी ही होता है, लेकिन उसके नसीब में क्या सिर्फ तालियां पीटना ही बदा है?
(18 अप्रैल 2024 को प्रकाशित)
Comments
Post a Comment