हृदय परिवर्तन, शर्म, ठगी, भरोसा और हंसी
हृदय परिवर्तन बुरी बात नहीं है. प्राचीन काल में बड़े-बड़े ऋषि-मुनि अपनी तपस्या के बल पर बड़े-बड़े पापियों का हृदय परिवर्तन करने में सक्षम होते थे. शास्त्रार्थ में हारने वाले का सचमुच ही हृदय परिवर्तन होने की कहानियां हमने प्राचीन ग्रंथों में पढ़ी हैं. फिर आज जब कोई कहता है कि ‘अब हम इधर-उधर नहीं जाएंगे’ या ‘सुबह उठने पर लगा कि मैं गलत जगह हूं, इसलिए सही जगह आ गया’ तो उसके हृदय परिवर्तन पर विश्वास होने के बजाय सिर शर्म से झुकने क्यों लगता है?
शर्म तो तब भी आती है जब सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने की सरकार की योजना के तहत कोई अपने घर की छत पर सोलर रूफटॉप लगवाता है और जब बिजली उत्पादन के लिए अधिकारियों द्वारा उसे शुरू करने की बारी आती है तब पता चलता है कि सोलर रूफटॉप से जुड़े एप्प तो चीनी हैं! अब इसमें उस बेचारे ग्राहक की क्या गलती जिसने चीनी एप्प वाली कंपनी से सोलर रूफटॉप लगवाया, क्योंकि सरकार ने उसे बैन तो किया नहीं था! पर्यावरण संरक्षण की नेक भावना रखते हुए डेढ़-दो लाख रुपए खर्च करने के बाद उसे तो यही लगता है कि वह ठगा गया!
ठगा हुआ तो लोग तब भी महसूस करते हैं जब पता चलता है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए किसी ने जो इलेक्ट्रिक बाइक ली थी, उसे चार्जिंग के लिए लगाने के दौरान शाॅर्ट सर्किट के चलते आग लग गई और इसके कारण एक ही परिवार के सात लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. ऐसी घटनाएं भले ही हजारों-लाखों में एक होती हों लेकिन लोगों का भरोसा तो इससे डगमगाता ही है.
भरोसा तो तब भी डगमगाता है जब कोई विपक्षी दल कहता है कि सरकार प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो(सीबीआई) का अपने राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने के लिए दुरुपयोग कर रही है और सत्तारूढ़ दल कहता है कि ईडी और सीबीआई स्वायत्त संस्थान हैं और विपक्षी नेताओं के भ्रष्टाचार को उजागर कर रहे हैं, सरकार का इससे कोई संबंध नहीं है. दिलचस्प तो यह है कि जो दल विपक्ष में रहते हुए परेशान किए जाने का रोना रोता है, सत्ता में आने पर उसी पर परेशान किए जाने का आरोप लगने लगता है. यह राजनीतिक प्रहसन देखकर हंसी आती है.
हंसी तो तब भी आती है जब खुशहाली सूचकांक में 126वें नंबर पर रहने वाले भारत को काफी पीछे छोड़ते हुए पाकिस्तान 108वें स्थान पर जा पहुंचता है और इसके कुछ दिनों बाद ही विश्व बैंक कहता है कि पाकिस्तान में गरीबी कहर मचाने वाली है क्योंकि उसकी आर्थिक स्थिति बिगड़ रही है, मुद्रास्फीति 26 प्रतिशत की दर पर पहुंच गई है और लगभग 9.8 करोड़ पाकिस्तानी पहले से ही गरीबी रेखा के नीचे हैं. खुशहाली सूचकांक बनाने वालों को क्या इसका पता नहीं था? या गरीबी ही खुशहाली का पैमाना है?
5 अप्रैल 2024 को प्रकाशित
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