तपस्या बनाम परिश्रम


कल देखी मैंने जब ‘बारहवीं फेल’ फिल्म
याद आई मुझको रामायण की चौपाई
जो रामचरितमानस में लिख गये बाबा तुलसीदास
कि ‘तपबल रचइ प्रपंचु बिधाता, तपबल बिष्नु सकल जग त्राता
तपबल संभु करहिं संघारा, तप तें अगम न कछु संसारा’
सहसा अर्थ समझ में आया किसको कहते लोग तपस्या थे।

है ऐसी कोई चीज नहीं, हो जिसे असम्भव पाना श्रम के बल पर
करके ही अपार तप देव-असुर सब शक्ति अलौकिक पाते थे
गीताजी का तो अनासक्ति का योग सिखाता है यह
जब निष्काम भाव से करते हैं हम काम प्राण-पण से तब
ईश्वर भी ऐसे लोगों की इच्छा के अधीन हो जाता है
इंसान उसी स्तर पर जाकर भगवानों का अवतार रूप बन पाता है।

होता है दु:ख घनघोर देख कर यह
कि शक्ति हम रखते हैं बन पाने की भगवान मगर
कितनी आसानी से कर देते हैं जीवन बर्बाद
कौन बन पाने की भगवान कहे
इंसानों के भी स्तर से नीचे गिरकर
क्यों कुछ लोग हमारे ही समाज के भीतर से
शैतान रूप बन जाते हैं?
रचनाकाल : 25 फरवरी 2024

Comments

Popular posts from this blog

गूंगे का गुड़

सम्मान

नये-पुराने का शाश्वत द्वंद्व और सच के रूप अनेक