साधन और साध्य
अर्जुन की तरह निगाहों में तो
सिर्फ लक्ष्य ही रखा
नहीं कुछ देखा इधर-उधर
बस अंधाधुंध दौड़ता गया
गलत फिर कहां हुआ
ये मंजिल क्यों अनजानी जैसी लगती है?
घर से निकला था लेकर लक्ष्य
कमाने का ही पैसा
इससे जैसे भी बन पड़ा
संपदा मैंने हासिल कर ली
तो फिर मन क्यों अब
अपराधबोध से भरा दिखाई पड़ता है?
जब पैसा पास नहीं था
तब सहता था कष्ट अनेक
आज पर धन है जब भरपूर
रोग भी उतने ही बढ़ गये
हजारों दोस्त-यार बन गये
मित्र पर सच्चा कोई नहीं
हमेशा मन क्यों विचलित रहता है?
शायद मैंने साधन की अनदेखी करके
बस नजर साध्य पर रख करके गलती कर दी
होता यदि साधन सच्चा तो
धन इतना कष्ट नहीं देता
मुझको करके अपना गुलाम
मालिक की जगह नहीं लेता!
इसलिये लक्ष्य की चिंता को अब छोड़
साधनों की शुचिता का रखता हरदम ध्यान
हमेशा रहता मन संतुष्ट
समझ में आता जाता है रहस्य
गीता में जो भगवान कृष्ण ने
कर्मयोग का ज्ञान दिया।
रचनाकाल : 21-22 फरवरी 2024
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