अच्छाई के पथ पर
अच्छाई मुझको आती नजर जहां भी
कोशिश करता हूं अपनाने की
बचता ही नहीं समय
कि बुराई देखूं, निंदा करूं
पैरवी करूं बुरे लोगों को दण्डित करने की।
प्रेरित मुझको करते हैैं अच्छे लोगों के
जीवन के कई प्रसंग
लौटते थे जब करके गंगाजी में स्नान
संत कोई तो महिला एक
उलट देती थी उनके ऊपर कचरा रोज
दुबारा उन्हें नहाना पड़ता था।
हद तो पर तब हो गई
एक दिन उन्हें नहाना पड़ा सैकड़ों बार
मगर गुस्सा आया न जरा भी
होकर शर्मिंदा वह महिला उनके
पैरों पर गिर गई
बुराई उसके मन के भीतर की मिट गई
संत की सहनशीलता जीत गई।
थे परम भक्त ईश्वर के कोई एक
चलाते थे दुकान कपड़े की
गुस्सा कभी न उनको आता था
उकसाने खातिर उनको पहुंचा
नौजवान उनकी दुकान पर एक
पूछ कर भाव एक महंगी साड़ी का
करके उसके दो टुकड़े, पूछा अब कितने की होगी?
वह टुकड़े करता गया, संत कीमत कम करते गये
अंत में बोला वह अब तो यह मेरे किसी काम की नहीं रही!
वह साधु पुरुष बोले यह सचमुच किसी काम की नहीं रही
तब उनके पैरों पर गिर कर वह लगा मांगने माफी
बोले भक्त कि कोई बात नहीं
बस टुकड़े जो भी किये जोड़ दो वह सारे।
अहसास हुआ तब नौजवान को
सरल तोड़ना है जितना
उतना ही होता कठिन जोड़ना
चीजों को या रिश्तों को।
इस तरह महापुरुषों के जीवन के प्रसंग
देते हैं मुझको सीख
पैठता हूं जितना गहराई में
उतने ही मुझको बेशकीमती
मोती मिलते जाते हैं।
रचनाकाल : 17-19 जनवरी 2024
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