मध्यम मार्ग


पहले यह सोचा करता था
पथ से सारी बाधाओं को
यदि कर डालूं मैं दूर
जिंदगी खुशियों से भर जायेगी!
चिंता न रहे यदि मन में
दौलत हो घर में भरपूर
भला क्या और चाहिये
जीवन में इससे बढ़कर!
पर जैसे ही सब दूर हुईं बाधाएं
चिंतामुक्त हुआ मन ज्यों ही
जीवन नीरस लगने लगा
ठहरने पर जैसे सड़ने लगता है पानी
छोटे-मोटे दोषों से मन भरने लगा
निरंकुश होकर तन-मन
लगने लगा पराया मुझको खुद से ही!
इसलिये नहीं अब कोशिश करता
दूर रहें बाधाएं या धन-दौलत हो भरपूर
राह में आते जो दुख-कष्ट उन्हें सहता हूं
फिर भी आगे बढ़ता रहता हूं
कि जैसे ढीले हों यदि तार
बेसुरी हो जाती है वीणा
ज्यादा कसने पर भी मगर
टूट जाने का खतरा रहता है
सम पर जैसे सुमधुर संगीत निकलता है
जीवन भी मध्य मार्ग में ही
सर्वाधिक उन्नति करता है।
रचनाकाल : 21-22 नवंबर 2022

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