रफ्तार


जब भी चढ़ता हूं पहाड़ पर
हो जाती चाल धीमी
भय लगने लगता है
जिंदगी की सुस्त रफ्तार से।
जब भी ढलान में उतरता था
दौड़ता था सरपट तीव्र वेग से
होती थी खुशी रफ्तार देख
लगता था उन्नति खूब करता हूं।
लेकिन अब जानता हूं
भागते ही जाना तीव्र वेग से
होता नहीं उन्नति का पैमाना
दिशा सही हो न अगर
लाती है तबाही रफ्तार तेज।
भागती ही जा रही है
दुनिया ढलान पर
खुश हैैं सब तेज रफ्तार देख
कोशिश करता मैं ऊपर चढ़ने की
चाल मगर धीमी है
लगने लगता है डर कभी-कभी
टूट तो न जायेगा दम मार्ग में!
करता हूं लेकिन विश्वास उन पर
पहुंच चुके पर्वत शिखरों पर जो पूर्वज
उनके पदचिह्नों पर चलता ही जाता हूं 
मिलते हैैं रास्ते में कुछ ऐसे लोग भी
लगता है जिनको दिशा गलत है विकास की
दीखते हैैं लोग इक्का-दुक्का मुझे आगे और
पीछे भी कुछ आते जाते हैैं
बंधता है ढाढ़स कि सर्वथा अकेला नहीं हूं मैं
कोशिश करता हूं मगर चाल थोड़ी तेज हो
ताकि और लोग भी आकर्षित हों
समाने के पहले समुद्र में
उलट सके धारा विकास की।
राह बेशक कठिन है और शक्तियां भी अल्प हैैं
धारा पर बदलने को विकास की
पूरी ताकत से कोशिश करता हूं
लोग लेकिन तेज गति से कई गुना
नीचे को भागते ही जाते हैैं
मुझको भी कभी-कभी
खींचता सम्मोहन रफ्तार का
डरता हूं फिसल तो न जाऊंगा!
पूर्वजों पर लेकिन भरोसा रख
शिखर पर जो पहुंचे हैैं उनके पदचिह्नों पर
बढ़ता ही जाता हूं 
दीखती है आसन्न हार मगर
हार नहीं मानता हूं
छोड़ करके चिंता परिणाम की
लड़ता हूं युद्ध अपने हिस्से का।
रचनाकाल : 7 अक्टूबर 2021

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