मध्यम मार्ग


बहुत सताता था पहले अपने शरीर को
नहीं मानता था जब यह कहना मेरा
जिद थी मेरी मैं नहीं चलूंगा इसकी मनमर्जी से
इसको ही चलना होगा मेरे आदेशों पर।
था बहुत भयानक भीतर का संग्राम
जर्जरित था मैं भी, मेरा शरीर भी
पहुंच गया था मरणासन्न अवस्था में
तब अनायास ही ना जाने क्यों मुझको
याद आये थे गौतम बुद्ध और जिन महावीर
सहसा ही तब अहसास हुआ
जो मानव देह मिली मुझको, यह तो है साधन मात्र
अगर यह छूट गई वश में करते-करते ही तो
दुनिया को बेहतर करने का, अपने हिस्से का
फर्ज अदा आखिर कैसे कर पाऊंगा!
तब से मैंने कर ली है सुलह स्वयं से
अपना लिया है मध्यम मार्ग
नजर तो अब भी रखता हूं खुद पर
लेकिन शरीर को भी रखता हूं पुष्ट
ताकि मनचाहा इससे काम ले सकूं दुनिया में।
तब से ही मैंने छोड़ दिया नफरत करना
आधुनिक तरक्की वाली तकनीकों से
बेशक है मेरा परमाणु बमों पर कोई भी वश नहीं
मगर मैं उन्हीं विनाशक अस्त्रों की तकनीकों से
चाहता सृजन करना, दुनिया को
बेहतरीन बनाने वाली चीजों का।
छोड़ी थी मैंने खेती, मुझको लगता था
बैलों को भी रखना गुलाम
मानवता के अनुकूल नहीं हो सकता है हर्गिज
लेकिन जब देखा मैंने, करते ही बेदखल खेत से बैलों को
खेती का ही अस्तित्व पड़ गया संकट में
तब मुझको यह अहसास हुआ
लेना ही होगा बंधुभाव से काम सभी पशुधन से
अपने दृष्टिकोण में मुझको लाना ही होगा बदलाव
अगर परिशुद्ध बनाने की कोशिश में जीवन को मैं अड़ा रहूंगा
कुछ भी होगा सिद्ध नहीं
बढ़ती जायेगी दूरी जीवन और सोच के बीच सिर्फ
इसलिये लचीलापन मैं अपने भीतर लाता हूं
अतियों में जीना छोड़ मार्ग मध्यम अपनाता हूं।
रचनाकाल : 8 अगस्त  2021

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