अनुशासन की शक्ति
विषम परिस्थितियां ही अनुशासन की असल परीक्षा लेती हैैं
कई बार टालना चाहा मैंने काम व्यस्तताओं के डर से
सोचा सुकून से लिखूं-पढूंगा, काम निपट जायेंगे जब सारे
लेकिन फुरसत के क्षण में मैंने पाया मन भी ठण्डा था
लिखने को जो आवेग चाहिये था अदम्य
वह तो व्यस्त क्षणों में ही बस सम्भव था!
इसलिये नहीं अब करता कोई काम स्थगित
निर्धारित है जिसकी खातिर जो वक्त उसी में उसको पूरा करता हूं
होता जाता हूं धरती के जितना विशाल
मन आसमान के जितना व्यापक होता जाता है
सागर जितनी गहराई अपने भीतर अनुभव करता हूं।
जितनी ज्यादा बढ़ती जाती है शक्ति, जरूरत उतनी ही
जिम्मेदारी से रहने की बढ़ जाती है
धरती को नहीं इजाजत होती अंगड़ाई भी लेने की
ले सकते हैैं विश्राम नहीं सूरज या चांद सितारे पल दो पल को भी
डर रहता है अनुशासनहीन जरा-सा भी हो गये अगर
आ जाये ना भूकम्प कहीं, फट पड़े कहीं ना आसमान
दुनिया को लील न जाये कहीं सुनामी क्रुद्ध समंदर की।
अनुशासन मुझको लगातार व्याकता देता जाता है
धरती-सूरज और चांद-सितारों जितना ही मैं शक्तिमान
और धैर्यवान भी बनता जाता हूं।
रचनाकाल : 21 जुलाई-4 अगस्त 2021
Comments
Post a Comment