काँटों वाले फूल
बड़े अरमानों से बोये थे मैंने फूल
सदा से ही आकर्षित करते रहे हैं वे मुझे
नाच उठता है मन उन्हें देख
इसीलिए उगाना चाहता था मैं भी।
पर मैं दुनियादार न था
नहीं खरीदे थे गमले
मेरे लिए वे जीवन का हिस्सा थे
शोभा की वस्तु नहीं
इसीलिए लगाया था, आँगन के बीचोबीच।
अपार खुशी हुई उन्हें उगते और बढ़ते देख
अच्छी डीलडौल पाई है उन्होंने
घेर लिया है धीरे-धीरे पूरा आँगन
दी थी कुछ लोगों ने सलाह
उन्हें काट-छाँट कर तराशने की
कि इस तरह छेंकना पूरा आँगन (या जीवन)
अच्छी बात नहीं।
दिखाए थे उन्होंने अपने गमले
कि किस खूबी से इस्तेमाल करते हैं सौंदर्य का
पर जब भी उठाई मैंने कैंची
कोशिश की छाँटने की
मेरे शरीर पर ही लगते रहे घाव
और होता रहा लहूलुहान
बहुत दिनों बाद जाना यह
कि नाभिनालबद्ध था वह
मेरे ही साथ
इसीलिये लगते रहे मुझे सारे घाव।
जवान होने लगा वह
बनने लगी हैं कलियाँ
खिल उठेंगी फूल बन जो
कुछ ही दिनों में।
पर हुई है एक नई बात
काँटे जो कोमल थे
सहलाते थे अब तक
होते जा रहे सख्त।
वे तो सहलाते हैं
आते-जाते वैसे ही
खून निकल आता पर अब।
जैसे-जैसे आता समय
फूलों के खिलने का
बढ़ती जाती है चुभन।
चूँकि नाभिनालबद्ध हूँ
समझता हूँ भाषा उनकी
पूछ बैठा एक दिन
कारण इस तुर्शी का
और स्तब्ध रह गया सुन
उत्तर उनका।
बात दरअसल यह है
कि खून उन्हें चाहिए
कलियों के भीतर
बन रहे फूल जो
खून उन्हें चाहिए
धरती ही अब तक
उन्हें देती आई यह
नहीं बचा अब तो पर
उसके भी पास यह
चूस लिया हमने।
थरथराहट यह कैसी है!
क्यों काँप रहा मैं!
डर गया क्या माँग सुन?
नहीं-नहीं, ऐसी तो बात नहीं
खून तो मैं दूँगा ही
कैसे मार सकता भला
अपने ही अंग को!
याद आ गई थी बात
दुनियादारों की सलाह
यही तो चेताया था!
मैं ही था बावला
समझ नहीं पाया था।
नहीं-नहीं, दु:खी तो नहीं हूँ मैं
यूँ ही पड़ गया था थोड़ी सोच में
खून तो मैं दूँगा ही
स्थगित नहीं होगा, फूलों का खिलना
जान मेरी भले जाय, फूल पर खिलेंगे
रहूँ या न रहूँ मैं, खुशबू वे बिखेरेंगे।
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