जार्ज बुश के सपनों का भारत


बेचैन हूँ कई दिनों से
लिखना चाहता हूँ कविता
बेहतरीन गद्य लिखा है मैंने
पर यथार्थ पर तो मेरा बस नहीं!
यहाँ से तो किया जा रहा
दिनोंदिन बेदखल
और लेना चाहता हूँ शरण कविता की
ताकि पा सकूँ कुछ रस
शुष्क होते जीवन में।
पर सूख गया है अंतस भी मानो
रेगिस्तानी अंधड़ में।
नहीं फर्क पड़ता
लोगों को कविता से
बदल गई हैं रुचियाँ उनकी
डिस्को करते झूमते हैं वे
पश्चिमी संगीत पर
पीते हुए पेप्सी कोला
बातें करते हैं वे
शाहरु ख के सिक्स पैक
या ऐश्वर्या राय की।
अगर नहीं हुए वे रसिया
तो हो सकता है उनका प्रिय विषय
सचिन तेंदुलकर या सानिया मिर्जा।
प्रबुद्ध हुए अगर वे
तो रम सकते हैं राजनीति में
आए दिन होने वाले चुनाव
और परिणामों के आँकड़े
देते हैं रोमांच उन्हें
क्रिकेट मैच के स्कोर जैसा।
अगर अंतर्राष्ट्रीय रुचि के हुए
तो जार्ज बुश हो सकते हैं
बातचीत के उनके प्रिय विषय।
हर तरफ से निराश होकर
लीन हो जाना चाहता मैं
खेतिहर कामों में
धरतीपुत्रों के साथ।
पर होते ही वहाँ लोडशेडिंग
या पेट्रोलियम की किल्लत
पहिये जब थमते हैं ट्रैक्टर के
बंद होती है जुताई, सिंचाई या थ्रेशरिंग
वहाँ खड़ा पाता जार्ज बुश को
मनमुताबिक खींचते
या ढीलते हुए लगाम
सूदखोर महाजन या
हरामखोर जमींदार की तरह।

गाँव-गाँव दिखते हैं जार्ज बुश
और मैं पलटता हूँ पन्ने हिंद स्वराज के
होता हूँ हैरान, कि इसमें तो यह था नहीं
इसको तो भाते थे नगर-महानगर
फिर कैसे छा गया हर जगह, तूफान की तरह!
अभी इतना अरसा तो हुआ नहीं
फिर बापू कैसे चले गए इतनी दूर
कि लगने लगे स्वप्न की तरह!
छटपटाता हूँ, उन्हें छूना चाहता हूँ
और तब पाता हूँ
कि प्रगति की जिस ट्रेन में बैठे हैं हम
वह तेजी से उन्हें पीछे छोड़ती
भागती जा रही है पाताल की तरफ
छूटते जा रहे हैं बापू के गाँव-देहात
और ट्रेन में जिस गाँव का नमूना रख
ले जा रहे हम विकास करने
वह महात्मा गाँधी नहीं
जार्ज बुश के सपनों का है।
रोकना चाहता हूँ मैं ट्रेन
लेकिन जब खींचता हूँ जंजीर
तब चलता है पता
कि ब्रेक फेल हो चुके हैं इसके।
भयभीत हो मैं बताना चाहता हूँ सबको
पर कोई नहीं सुनता
नक्कारखाने में तूती की आवाज
ढलान में होती तेज रफ्तार को
अपनी सफलता मान
वे खुशी से छलका रहे हैं जाम
और भूल कर फिलहाल गाँव की चिंता
बचाना चाहता मैं पूरी ट्रेन (या पूरी दुनिया) को
भागी जा रही जो समाने
सागर के गर्भ में
अब तो सुनाई देने लगी है मुझे
लहरों की हरहराहट भी
पर नहीं सूझ रहा कोई उपाय
और दो छोरों के बीच
तेजी से लगाते हुए चक्कर
होता हूँ पसीना-पसीना
दिख रही है सामने सिर्फ
हर पल नजदीक आती मृत्यु।

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