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मिल-जुलकर काम करने और फरमान जारी करने का फर्क

 पिछले दिनों सोशल मीडिया पर वायरल एक ऑडियो क्लिप में तेलंगाना सोशल वेलफेयर रेजिडेंशियल एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस सोसाइटी की एक सीनियर अफसर प्रिंसिपलों को छात्रों से टॉयलेट, हॉस्टल रूम और किचन की सफाई कराने के निर्देश देती सुनाई दे रही थीं. इस पर विवाद खड़ा होने के बाद विपक्षी पार्टी बीआरएस ने जहां अफसर को हटाने की मांग कर डाली, वहीं राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने इस मामले में राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी कर रिपोर्ट मांगी. एक दूसरी खबर गुजरात के सूरत से है, जहां महेश पटेल नामक सज्जन हिंदी, अंग्रेजी और गुजराती माध्यम में ऐसा स्कूल चला रहे हैं, जहां नैतिकता सिखाई जाती है. इन स्कूलों में पढ़ने वाले 3500 बच्चों से कोई गलती होने पर शिक्षक उन्हें डांटते या मारते नहीं हैं बल्कि प्रिंसिपल खुद को सजा देते हैं. जैसे एक बार जब बच्चे गणतंत्र दिवस पर झंडा फहराने स्कूल नहीं आए तो अगले दिन से प्रिंसिपल नंगे पैर स्कूल आने लगे. यह देख बच्चे भी बिना जूतों के स्कूल आने लगे और सभी शिक्षकों से माफी मांगी. इस स्कूल में उन सभी बच्चों को प्रवेश मिल जाता है जिन्हें शरारतों और पढ़ाई में...

ऐच्छिक-अनैच्छिक का फर्क

जो सरल दिखाई देता था मैं अक्सर मार्ग वही जीवन में चुनता था सहना पड़ता था दु:ख जब भी मजबूरी में ही सहता था। स्वेच्छा से लेकिन जब से दु:ख का वरण किया वह नहीं भयानक पहले जैसा लगता है सुख भी अब बिन मांगे ही खुद ही मिलता है। दु:ख-सुख तो जीवन में अब भी उतना ही है पहले जो मजबूरी में सहकर गरिमा खोनी पड़ती थी स्वेच्छा से सहकर उसको कायम रखता हूं इतने भर से ही लेकिन मुझको जीवन में धरती और आसमान जितना महसूस फर्क अब होता है! रचनाकाल : 8 जून 2025

पीढ़ियों के बीच पुल

जब नहीं जानता था ज्यादा दुनियादारी था नहीं आत्मविश्वास, बोलने में हकलाया करता था पर धीरे-धीरे सीख लिया, पटु वक्ता भी बन गया मगर महसूस हुआ, जो नहीं जानते हैं ज्यादा दुनियादारी बातें करते मुझसे हकलाया करते हैं। वे सहज बनें, पा सकें आत्मविश्वास इसलिये बातें उनसे करता जब थोड़ा हकलाया करता हूं नादानी थोड़ी अपने भीतर लाकर यूं नादानों में भी घुल-मिल जाया करता हूं। रचनाकाल : 25 फरवरी-4 जून 2025

अपनी ही लगाई आग में झुलसते देश और दुनिया में गहराता अंधेरा

 जो अमेरिका पूरी दुनिया में लड़ाइयों के लिए बदनाम रहा है, अब उसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने देश की सुरक्षा को अभेद्य बनाने के लिए ‘गोल्डन डोम’ के निर्माण की घोषणा की है. इजराइल के ‘आयरन डोम’ से लोग  सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि गोल्डम डोम क्या बला है. सवाल यह है कि दुनिया के चौधरी अमेरिका को क्या सचमुच किसी से इतना ज्यादा खतरा है या वह काल्पनिक भय के चलते 175 अरब डॉलर हथियारों के भाड़ में झोंक रहा है? पिछली सदी के पांचवें-छठवें दशक में जब शीतयुद्ध चरम पर था, दुनिया इसी तरह परमाणु युद्ध के साये में जिया करती थी. द्विध्रुवीय दुनिया के दोनों शिखर देशों- अमेरिका और सोवियत रूस के बीच अधिक से अधिक परमाणु हथियारों के निर्माण की होड़ लगी थी. इतिहास के पन्नों में झांकें तो आप पाएंगे कि गलतफहमियों के चलते कई बार ऐसे मौके आए थे जब दुनिया परमाणु युद्ध की आग में स्वाहा होने से बाल-बाल बची थी. हास्यास्पद बात यह कि पूरी दुनिया को खत्म करने के लिए महज कुछ सौ परमाणु बम ही काफी थे, फिर भी दोनों देश हजारों बम बनाए जा रहे थे. बाद में संबंधों में जब कुछ सुधार आया तो संधि हुई कि दोनों देश ...

जादुई आकर्षण

जब नहीं जानता था जादू के ट्रिक्स मुझे वह चमत्कार सा लगता था लेकिन जैसे ही पता चला मानो सारा भ्रम टूट गया जो मंत्रमुग्ध करता था पहले खेल अचानक ही सारा रस चला गया। इसलिए नहीं अब इच्छा है जादुई रहस्यों को ईश्वर के मैं जानूं  लेने के पहले जन्म या कि हो जाती है जब मृत्यु कहां हम जाते हैं चल जाये यदि यह पता नहीं रोमांच खत्म क्या जीवन का हो जायेगा! जब सबकुछ पहले से हो जाये पता जिंदगी जीने का आकर्षण क्या रह जायेगा? रचनाकाल : 1-28 मई 2025

आदर्श सामने रखने से मिलती है आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा

 पिछले दिनों फिटनेस ट्रेनर एश्टन हॉल के मॉर्निंग रूटीन के वायरल हुए वीडियो की सबसे बड़ी खासियत यह नहीं थी कि इसमें वे अपनी दिनचर्या की शुरुआत सुबह चार बजे से पहले करते दिखते हैं, बल्कि यह थी कि इसे सोशल मीडिया पर 74 करोड़ से ज्यादा बार देखा गया. कई लोगों के मन में सवाल उठा कि आखिर दूसरों की जिंदगी में ताकझांक करने के लिए हम इतने उत्सुक क्यों रहते हैं?  दरअसल हम जाने-अनजाने, हमेशा हर चीज से अपनी तुलना करते रहते हैं. समय सभी के पास एक बराबर होता है और हमारे भीतर यह जानने की जिज्ञासा होती है कि समय का उपयोग कोई अगर हमसे बेहतर कर रहा है तो किस तरह से कर रहा है! इसीलिए हम अपने आदर्श गढ़ते हैं ताकि उसका अनुकरण कर सकें. यह परीक्षा में पूर्णांक का पीछा करने के समान है. प्रश्नपत्र जानबूझकर इस तरह बनाए जाते हैं ताकि कोई भी पूरे नंबर हासिल न कर सके. दरअसल शत-प्रतिशत हासिल करते ही हमारे जीवन के लक्ष्य विहीन हो जाने का खतरा रहता है. इसलिए साल-दर-साल बच्चे जैसे-जैसे ऊंची कक्षा में बढ़ते जाते हैं, प्रश्नपत्र तुलनात्मक रूप से कठिन होते जाते हैं. आठवीं कक्षा का छात्र पांचवीं कक्षा में शत-प्रति...

परम्परा : पुरानी ढहने और नई निर्मित नहीं होने की त्रासदी

 नशा किसी भी चीज का हो, बच्चों को वह बहुत जल्दी चपेट में लेता है, ठीक उसी तरह जैसे छोटी उम्र में किसी को कुछ सिखाना बड़ों की तुलना में बहुत आसान होता है. शायद बड़े होनेे के साथ-साथ आदमी लचीलापन खोता जाता है, जबकि बचपन मिट्टी के लोंदे के समान होता है, जिसे कुशल कुम्हार मनचाहा आकार दे सकता है.  इसीलिए बच्चों को मोबाइल और नशे से दूर रखने के लिए केरल के पत्तनमिट्टा जिले की नेदुंबपुरम ग्रामपंचायत ने ‘कुट्टीकेयर’ नामक जो अनोखी मुहिम शुरू की है, वह देश के सभी गांवों को दिशा दिखा सकती है. इस मुहिम के अंतर्गत गांव के आठवीं से बारहवीं कक्षा तक के बच्चे वहां के बीमार और बुजुर्ग लोगों से मिलते हैं और उन्हें हिम्मत बंधाते हैं कि वे जल्दी ठीक हो जाएंगे. बदले में उन्हें बुजुर्गों के अनुभव से ऐसी-ऐसी बातें सीखने को मिलती हैं जो किताबों में नहीं मिल सकतीं. इंदौर और पुणे में भी कहते हैं बच्चों की स्मार्टफोन की लत छुड़ाने के लिए इसी तरह के रचनात्मक प्रयास किए जा रहे हैं.  ग्रामीण परिवेश से संबंध रखने वाले पुरानी पीढ़ी के लोगों को पता होगा कि पहले स्कूलों में शनिवार का दिन सांस्कृतिक कार्यक्...