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दर्शक तो हम बन गए, मगर सर्जक के सुख को गंवा दिया !

 अमेरिका के लिटिल रॉक की निवासी एलिस जॉनसन को जब जिंदगी बहुत बोझिल लगने लगी तो अपने सत्तरवें जन्मदिन पर उन्होंने निश्चय किया कि वे अगले एक साल में 70 नई क्रियेटिव चीजें करेंगी. वे चाहती थीं कि हर अनुभव उनके लिए नया हो, इसलिए सीखने की सूची में अलग-अलग विषयों को रखा- जैसे कुछ नया खाना बनाना सीखना, कोई नई कला सीखना आदि. साल बीतते न बीतते उन्होंने पाया कि उनकी जिंदगी एकदम बदल गई है. वे कहती हैं, ‘हम खुद को बहुत बहाने देते हैं, मैंने भी दिए. अब नहीं देती.’ अमेरिका के ही कारमेन डेल ओरेफिस ने 1945 में 14 साल की उम्र में मॉडलिंग करियर की शुरुआत की थी, और आज 94 साल की उम्र में भी वे फैशन की दुनिया में सक्रिय हैं. कारमेन का मानना है कि काम करते रहना ही सफलता की कुंजी है. आयरलैंड के 89 वर्षीय आयरिश हार्प मेकर नोएल एंडरसन ने 82 वर्ष की उम्र में वीणा बनाना सीखा था. वे पिछले सात वर्षों में 18 वीणा बना चुके हैं तथा इन दिनों 19वीं सदी की एक खास डिजाइन पर काम कर रहे हैं.  महापुरुषों की कहानियां पढ़ें तो हम पाएंगे कि उन्होंने अपने जीवन के अंत तक खुद को सृजनात्मक बनाए रखा था. रवींद्रनाथ टैगोर ने...

सबकुछ बदल गया!

पहले रख व्रत-उपवास मनाया करते थे उत्सव सारे ये कैसे भोग-विलास हमारे त्यौहारों का अर्थ नया बन गया! ‘बाजारू’ तो था हेय सदा हो जिसके पास अधिक जो अदला-बदली वे कर लेते थे बाजार मगर फिर कैसे सबकुछ निगल गया! ‘धन-दौलत गई, कुछ गया नहीं पर चरित्र गया, कुछ बचा नहीं’ हमने तो हरदम यही पढ़ा फिर लक्ष्य जिंदगी का यह कैसे बदल गया! सर्वस्व सदा माना अपना जिन जीवन-मूल्यों को हमने दकियानूसी कह कर उनको कब छोड़, जमाना आगे निकल गया! रचनाकाल : 7 नवंबर 2025

हो ढंग अगर सुंदर लड़ने का, जीत सभी पक्षों की होती है

पूर्व मंत्री से अपने बकाया पैसों की मांग को लेकर एक ‘स्कूल स्वच्छता दूत’ और यूट्यूबर रोहित आर्य ने मुंबई के पवई इलाके में पिछले दिनों 17 बच्चों समेत 20 लोगों को बंधक बना लिया और पुलिस की कार्रवाई में आखिरकार मारा गया. किसानों की कर्जमाफी को लेकर एक पूर्व मंत्री ने नागपुर के पास एक नेशनल हाइवे को 30 घंटे तक जाम रखा और हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद आखिरकार हजारों वाहनों और लोगों को राहत मिली.   रोहित आर्य का कहना था कि उसे महाराष्ट्र के पूर्व शिक्षा मंत्री दीपक केसकर के कार्यकाल के दौरान शिक्षा विभाग से स्कूल का टेंडर मिला था, जिसका भुगतान अभी तक नहीं मिला है. इसको लेकर पिछले साल वह तीन बार अनशन भी कर चुका था. रोहित का आरोप था कि उसे ‘मेरी पाठशाला, सुंदर पाठशाला’ अभियान की जिम्मेदारी मिली थी और यह अभियान सफल भी रहा. लेकिन उसके द्वारा यह खुलासा किए जाने के कारण  कि ‘इस अभियान में राज्य के कुछ नेताओं के स्कूलों को गलत अंक दिए गए और जानबूझकर उन्हीं स्कूलों को विजेता के रूप में चुना गया’, उसका बकाया रोक दिया गया था. नतीजतन उसने बच्चों को बंधक बना लिया (हालांकि पूर्व मंत्री का कह...

कृतज्ञता और कृतघ्नता

जो देता है हम उसे देवता कहते हैं फिर क्यों हरदम लेने की इच्छा रखते हैं? जड़ जिन्हें समझते हैं हम पौधे-पेड़ सभी तो देते हैं फिर याचक बनकर ही खुश क्यों हम रहते हैं? हो सकता है हों बुद्धिमान हम दुनिया में सबसे ज्यादा खुदगर्ज बनाये लेकिन जो क्या बुद्धि उसी को कहते हैं? लेता है कोई काम अगर  प्रतिदान नहीं देता है तो अन्यायी उसे समझते हैं फिर जड़-चेतन सबसे लेकर मन में कृतज्ञ भी हो न सके ऐसा कृतघ्न मानव बनकर कैसे हम सब जी लेते हैं? (रचनाकाल : 30 अक्टूबर 2025)

हमें अपनी बेशुमार क्षमताओं का अहसास करा सकता है एआई !

 ऐसे समय में, जबकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) को लेकर दुनियाभर में संदेह के बादल छाए हुए हैं, इसके सदुपयोग का एक सुंदर उदाहरण पिछले दिनों देखने को मिला, जब इस पर आधारित मौसम मॉडल के जरिये हमारे देश में 38 लाख किसानों को मानसून से जुड़ी जानकारी दी गई. पारम्परिक सुपर कम्प्यूटर मॉडल के मुकाबले यह इतना सटीक था कि 30 दिन पहले ही इसने न केवल मानसूनी बारिश के आगमन का सही समय बताया, बल्कि बीच में 20 दिन बारिश रुकने की चेतावनी भी दी, जिसे पारम्परिक मॉडल पकड़ नहीं पाए थे.  पुराने जमाने में यही काम समाज के बड़े-बुजुर्ग किया करते थे. अनुभवी आंखें मौसम की चाल को समय रहते भांप लिया करती थीं और उन्हीं की सलाह पर किसान तय करते थे कि ज्यादा पानी की जरूरत वाली धान जैसी फसल बोनी है या कम पानी में भी तैयार हो जाने वाले ज्वार, बाजरे जैसे मोटे अनाज.    अतीत के अनुभवों के आधार पर भविष्य का अनुमान लगाना कदाचित ऐसी विशेषता है जो इस धरती पर सभी जीव-जंतुओं में पाई जाती है. भूकंप का सटीक अनुमान हमारी अत्याधुनिक मशीनें अभी तक भले न लगा पाई हों लेकिन कई जीव-जंतुओं में भूकंप आने के कुछ समय पहले ...

मनोरंजन के तिलिस्म को तोड़कर भयावह यथार्थ दिखाए कौन ?

 पिछले दिनों एक खबर आई कि अमेरिका के फ्लोरिडा में अटलांटिक महासागर के एक तट के पास समुद्र में हिचकोले खाते एक हिरण को बचाव दल ने बचाया. हमारे देश में भी तेंदुओं या अन्य जंगली जानवरों के कुएं में गिरने या अन्य कहीं फंसने पर बचाए जाने की खबरें अक्सर सामने आती हैं. बोरवेल के गड्ढे में कहीं किसी बच्चे के गिरने की खबर आती है तो उसकी सलामती के लिए पूरा देश प्रार्थना करने लगता है. करीब दस साल पहले तुर्की के समुद्री तट पर बहकर आए तीन साल के बच्चे अयलान कुर्दी का शव देखकर पूरी दुनिया की आंखें नम हो गई थीं. सूडान में 32 साल पहले एक फोटोग्राफर ने अकाल के दौरान भूख से मरती एक बच्ची की फोटो खींची थी, जिसके मरने का इंतजार करता एक गिद्ध कुछ दूर बैठा था (क्योंकि गिद्ध सिर्फ मृतकों का मांस खाते हैं). इस फोटो के लिए फोटोग्राफर को दुनिया का प्रतिष्ठित पुलित्जर पुरस्कार भी मिला. लेकिन बच्ची को न बचा पाने की विवशता फोटोग्राफर की अंतरात्मा को कचोटती रही और कुछ महीने बाद ही उसने आत्महत्या कर ली. आज भी ये तस्वीरें हमें भीतर तक हिला देती हैं.  इसमें कोई शक नहीं कि मानव जाति दुनिया की सर्वाधिक संवेदनशी...

सादगी का सौंदर्य

तमस भगाने की खातिर  रातों को मैंने दिन की तरह बना डाला पर बिगड़ी सर्केडियन क्लॉक दिनचर्या सबकी अस्त-व्यस्त हो गई समझ में तब आया रातों का गहन अंधेरा भी जीवन के लिये जरूरी है विश्राम इसी में जीव-जंतु सब पाते हैं। इस दीप पर्व पर इसीलिये मिट्टी के दीप जलाता हूं जो जुगनू जैसी जगमग से तन-मन आलोकित करते हैं सुंदर चेहरे पर जैसे काला तिल भी अच्छा लगता है वैसे ही गहरी रातों में नन्हें दीपक का जलना सुंदर लगता है। (रचनाकाल : 18 अक्टूबर 2025)