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दीपक को चाहे जितना नीचे रखें, मगर लौ उसकी ऊपर रहती है

 हाल ही में ब्रिटेन में धान की खेती सफलतापूर्वक किए जाने की खबर सामने आई है. जो लोग ब्रिटेन की आबोहवा से परिचित हैं वे जानते हैं कि वहां के लोग चावल खाते जरूर हैं, लेकिन विदेशों से आयात करके, क्योंकि वहां की जलवायु धान की खेती के अनुकूल नहीं है. लेकिन जलवायु परिवर्तन ने अब इसे संभव कर दिखाया है. शोधकर्ताओं का मानना है कि यदि औसत वार्षिक तापमान दो से चार डिग्री सेल्सियस बढ़ा तो ब्रिटेन में बड़े पैमाने पर चावल की खेती संभव हो सकती है.  राजस्थान का थार रेगिस्तान भारत से लेकर पाकिस्तान तक करीब दो लाख वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है और यह दुनिया का बीसवां सबसे बड़ा रेगिस्तान है. पिछले दिनों अर्थ फ्यूचर जर्नल में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक अगर भारतीय मानसून के पश्चिम की ओर लौटने की प्रवृत्ति जारी रही तो इस सदी के अंत तक यह हरा-भरा हो सकता है (इसके संकेत अभी से दिखने लगे हैं, राजस्थान के कई हिस्सों में हरियाली नजर आने लगी है और बाढ़ भी आने लगी है). वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि हजारों वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में सिंधु घाटी सभ्यता मौजूद थी और तब यहां भरपूर मानसूनी बारिश होती थी.  द...

सुख अधिक कीमती है या दु:ख?

भगवान जिन्हें हम कहते हैं क्या सुख वे भोगा करते हैं? वनवास बरस चौदह भोगा जब राज मिला तब निर्वासित कर सीता को सुख कितना भला मिला होगा भीतर-बाहर दु:ख जीवनभर जो सहता है क्या राम उसी को कहते हैं? जो राजमहल से दूर पर्वतों पर वनवासी लोगों जैसे रहते हैं दुनिया को लेकिन जीवन देने की खातिर जो जहर पी लिया करते हैं उन शिवशंकर को ही हम पूजा करते हैं! सोने की लंका में जो रावण रहता है धन लूट-पाट कर जो कुबेर का सब सुख भोगा करता है सीता को हर लेता है जो, हम उसे जलाया करते हैं फिर सुख के पीछे ही क्यों भागा करते हैं?   (रचनाकाल : 6 अक्टूबर 2025)

ये जो लौ जली है वो बुझ गई तो न दूर होगा तमस कभी

 तमिलनाडु की सेंट्रल जेलों में इन दिनों एक अभूतपूर्व बदलाव देखने को मिल रहा है. जो कैदी पहले गैंग बनाकर आपस में लड़ते-भिड़ते रहते थे, वे अब ग्रुप बनाकर पढ़ाई कर रहे हैं. दरअसल तमिलनाडु की सभी नौ सेंट्रल जेलों में अगस्त 2024 से कोंडुकुल वनम (किताब एक आकाश की तरह है) योजना चलाई जा रही है. इसके तहत जेल में सभी पढ़े-लिखे कैदियों के लिए किताब पढ़ना अनिवार्य कर दिया गया है. एक साल के भीतर ही इस योजना को इतनी अप्रत्याशित सफलता मिली है कि राज्य की बाकी 14 जिला जेलों में भी जेल विभाग लाइब्रेरी शुरू करने जा रहा है.  एक दूसरी उत्साहवर्धक खबर राजस्थान के जालौर जिले से है. वहां के दो गांवों- रेवत और कलापुरा में सरकारी स्कूल के ग्यारहवीं-बारहवीं कक्षा के छात्र अपने परिवार और गांव के बुजुर्गों के पास बैठते हैं. उनसे बातचीत करके क्षेत्र के इतिहास के बारे में जानकारी जुटाते हैं और बुजुर्गों की बताई कहानियां अपनी नोटबुक में दर्ज करते हैं. फिर स्कूल में शिक्षक सभी बच्चों की डायरियां इकट्ठी करने के बाद उनमें से कॉमन कहानियों को बड़ी पोथी में लिपिबद्ध करवाते हैं. अब तक 300 बच्चे अपने बुजुर्गों के ...

नैतिकता को बेवकूफी समझने की मूृर्खता से पिछड़ता देश

 ब्रिटेन में उपप्रधानमंत्री एंजेला रेनर ने हाल ही में नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे दिया. रेनर ने एक घर खरीदा था और अनजाने में ही उस पर कम टैक्स चुकाया. दरअसल ब्रिटेन में पहली प्रॉपर्टी खरीदने पर कम टैक्स देना पड़ता है और दूसरी बार खरीदने पर ज्यादा. रेनर को लगा कि यह उनकी पहली प्रॉपर्टी है. लेकिन पता चला कि अपने विकलांग बेटे के लिए बनाए गए एक खास ट्रस्ट की वजह से यह फ्लैट उनकी दूसरी प्रॉपर्टी मानी गई है और इस हिसाब से उन्होंने 44 लाख रु. कम टैक्स भरा है. रेनर ने खुद ही स्वतंत्र सलाहकार लॉरी मैग्नस से जांच करवाई और अपनी गलती पाए जाने पर प्रधानमंत्री स्टार्मर को इस्तीफा सौंप दिया! रेनर अपनी पार्टी की प्रतिभाशाली नेता थीं और माना जा रहा था कि वे स्टार्मर की उत्तराधिकारी होंगी. तो, उन्होंने भविष्य में प्रधानमंत्री बनने का मौका गंवा दिया है. रेनर ने आखिर ऐसा क्यों किया? गलती की भरपाई वे जुर्माना भरकर भी तो कर सकती थीं! आखिर किसी उपप्रधानमंत्री के लिए 44 लाख की रकम इतनी बड़ी तो नहीं हो सकती कि इसका खामियाजा उसे राजनीतिक निर्वासन के रूप में भुगतना पड़े! वह भी तब जब हमारे देश की तरह वहां व...

विजयादशमी

युद्ध दुनिया में तो होते ही रहे हैं हरदम मानते हैं सही खुद को सभी इस दुनिया में राम ने किंतु जो वनवास के दु:ख-कष्ट सहे राजमहलों से अचानक ही निकल कर वन में छोड़कर सुख जो भटकते रहे जंगल-जंगल याद आती है तो व्याकुल मुझे कर जाती है। उन दिनों में भी क्या होती थी उम्रकैद यही वर्ष चौदह की सजा तब भी मिला करती थी? जब निरपराध कोई स्वेच्छा से इसे सहता है आग में तप के वो भगवान बना करता है! रचनाकाल : 1-2 अक्टूबर 2025

दूसरे की लकीर मिटाने की जगह हम क्यों नहीं खींचते बड़ी लकीर !

 शून्य से भी नीचे के तापमान वाले लद्दाख का माहौल इन दिनों गरम है. अपने पर्यावरणपरक कार्यों से सिर्फ लद्दाख ही नहीं, बाकी दुनिया में भी ख्याति प्राप्त सोनम वांगचुक इन दिनों जेल में हैं, और वह भी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत, जिसमें जमानत भी जल्दी नहीं होती. उन पर हाल ही में लद्दाख में भड़की हिंसा को बढ़ावा देने का आरोप है. लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और संविधान की छठवीं अनुसूची में शामिल करने सहित कुछ अन्य मांगों को लेकर वांगचुक 35 दिनों की भूख हड़ताल पर बैठे थे, लेकिन दसवें दिन ही आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया. वांगचुक ने तत्काल अपना आंदोलन वापस ले लिया और कहा कि युवाओं ने हताश होकर ऐसा किया है लेकिन उन्हें हिंसा नहीं करनी चाहिए थी.   पिता सोनम वांग्याल राज्य सरकार में मंत्री थे, लेकिन प्रकृति और पर्यावरण में गहरी रुचि रखने वाले सोनम वांगचुक की जीवन शैली बेहद साधारण है. खुद एनआईटी से इंजीनियरिंग की डिग्री पा चुके हैं लेकिन सरकारी शिक्षा की खामियों का पता चलने पर ऐसा स्कूल खोला, जिसमें टॉप स्कूलों की उच्चतम अंकों वाली प्रवेश प्रक्रिया के उलट, फेल होने वाले...

कर्मों की ध्वनि मन सुनता है

जब बात नहीं सुनते थे मेरी लोग बहुत मैं परेशान तब होता था झल्लाता, गुस्सा आता मन उद्विग्न हमेशा रहता था। सहसा ही लेकिन लगा एक दिन यह तो केवल मेरी नहीं समस्या है दुनिया में सारे झगड़ों की जड़ ही यह है सबको लगता है सब जन उनकी बात सुनें! तब से मैं जो कहने की इच्छा रखता हूं आचरण स्वयं करने की कोशिश करता हूं पहले मुझको लगता था जितना तेज अधिक चिल्लाऊंगा उतना ही ज्यादा लोग उसे सुन पाएंगे पर समझ गया अब यह रहस्य हम इंसानों की वाणी ज्यादा दूर नहीं जा पाती है तय फ्रीक्वेंसी में ही बस हम सुन पाते हैं पर हाथी जैसे इंफ्रासोनिक ध्वनियों को सुन लेता है जो बहुत दूर तक जाती है वैसे ही कर्मों की ध्वनि की पिच धीमी इतनी होती है जो कान भले ही सुन न सकें पर मन सबका सुन लेता है!   रचनाकाल : 28 सितंबर 2025