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जनता से कटते नेताओं की मोटी होती चमड़ी और खत्म होती संवेदना

 हाल ही में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने नीट-यूजी से जुड़े एक मामले में 13 मिनट तक अंधेरे में सुनवाई की. दरअसल इंदौर में नीट-यूजी में बैठे 75 छात्रों ने शिकायत की थी कि परीक्षा के दौरान बारिश के चलते बिजली चली गई थी, जिससे अंधेरे में वे ठीक से परीक्षा नहीं दे पाए. वहीं प्रतिवादी के वकील का कहना था कि जिन शहरों में आपदा आई, वहां के छात्र भी अच्छे अंकों से पास हुए, इसलिए याचिका खारिज की जानी चाहिए. इस पर जस्टिस सुबोध अभ्यंकर ने कहा कि हम देखना चाहते हैं अंधेरे में काम होता है या नहीं, इसलिए लाइट बंद कर दीजिए. और इस तरह कोर्ट की सुनवाई अंधेरे में चली.  परिस्थिति को सटीक ढंग से समझने के लिए पुलिस जैसे सीन रिक्रिएट करती है, यह कुछ-कुछ वैसा ही है. हाल ही में इंदौर के बहुचर्चित राजा रघुवंशी हत्याकांड में भी हमने ऐसा होते देखा है. अदालतें कई बार यह तरीका अपनाती हैं. इंदौर में एक जिला जज ने मारपीट के मामले में एक व्यापारी के खिलाफ मामला दर्ज कराया था. तब हाईकोर्ट ने कोर्ट रूम में सीसीटीवी रिकॉर्डिंग देखने के बाद व्यापारी को राहत दी थी.  यह प्रक्रिया दरअसल सहानुभूति का ही एक रूप है. जब ...

कठिन समय के साथी

यह सच है जग में सारी चीजें ढलती हैं दिन-रात हमेशा आते-जाते रहते हैं इसलिये नहीं यह कभी कामना करता हूं जीवन में हरदम अच्छे दिन ही बने रहें पर कभी समय प्रतिकूल शुरू हो जाये जब अच्छा करने पर भी परिणाम बुरा आये सोना भी हाथ लगाते मिट्टी बन जाये हे ईश्वर, ऐसे कठिन समय में भी मेरे भीतर के सद्‌गुण नष्ट नहीं होने देना जब सिर्फ जरा सी करने पर बेईमानी होने वाला हो लाभ मुझे, ऐसे में भी ईमान नहीं मेरे मन का डिगने देना बदले में चाहे जितना भी दु:ख दे देना मैं जैसे पास किताबें रख दो-चार बहुत बोझिल दिन में भी बोर नहीं होने पाता वैसे ही सद्‌गुण बने रहेंगे साथ अगर जंगल को भी मैं मंगलमय कर ही लूंगा। रचनाकाल : 25 जून 2025

शिक्षा की कीमत पर फलता-फूलता दुनिया का रक्षा बजट

 इन दिनों सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें कक्षा के भीतर छात्र छाता लगाकर पढ़ाई करते दिखाई दे रहे हैं. वीडियो प. बंगाल के हुगली जिले में स्थित पंचपाड़ा प्राइमरी स्कूल का बताया जाता है, बारिश में जिसकी छत टपकने से 68 बच्चे क्लास में छाता लगाकर पढ़ने को मजबूर हैं. 1972 से चलने वाले इस स्कूल के तीन कमरे गिर चुके हैं और चौथा भी बेहद जर्जर हालत में है.  दूसरी ओर थिंक टैंक स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की ताजा रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2024 में दुनिया ने रक्षा पर 235 लाख करोड़ रु. खर्च किए. मतलब हर साल प्रति व्यक्ति 29 हजार रु. खर्च हो रहा है. जबकि भारत के रक्षा बजट के मुकाबले यह औसत 47 हजार रु. प्रति व्यक्ति है. उधर पीआरएस इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022-23 में भारत के बड़े राज्य शिक्षा पर औसतन प्रति व्यक्ति 5300 रु. खर्च कर रहे थे. यानी शिक्षा के मुकाबले हर व्यक्ति की रक्षा पर आठ गुना से भी अधिक व्यय हो रहा है!  दुर्भाग्य से हमारे देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर की सरकारों के लिए प्राथमिकता अब शिक्षा नहीं बल्कि रक्षा बजट हो गया है. शासक अपना दबदबा ब...

सभ्यता और बर्बरता

दीवाली में जब फोड़ा करते थे अनार या सुतली बम हम बच्चों को आतिशबाजी में मजा बहुत ही आता था तब नहीं जान पाये थे कभी भयावह सच दुनिया में जानें लेने खातिर भी बम फोड़े जाते हैं! टीवी पर जब देखा करते नायक को मारकाट करते तब जोश भुजाओं में हम बच्चों के भी आ ही जाता था सोचा ही था तब नहीं कि असली दुनिया में जो खून बहाया जाता, इतना अधिक भयानक होता है! होता था हमको गर्व बहुत, यह लगता था हम मानव सबसे सभ्य, विश्व में होते हैं पर देख भयानक युद्धों को, अब बच्चे पूछा करते हैं क्या सभ्य लोग भी इतने बर्बर होते हैं!   रचनाकाल : 19 जून 2025

निहित स्वार्थों की जंग का खामियाजा भुगतती जनता

  पंचतंत्र में एक कहानी है कि गीदड़ दमनक जब बैल संजीवक और सिंह पिंगलक की दोस्ती से खुद को उपेक्षित महसूस करने लगा तो उसने उनमें फूट डालने की कोशिश की. एक तरफ तो उसने पिंगलक से कहा कि संजीवक उसका राज्य हड़पने की योजना बना रहा है, दूसरी तरफ संजीवक को भड़काया कि जंगल का राजा उसे मारकर खा जाना चाहता है. नतीजतन, गलतफहमी के शिकार दोनों मित्रों का जब आमना-सामना हुआ तो उनकी आंखें क्रोध से लाल थीं और नथुने फूले हुए थे. एक-दूसरे को देखकर उन्हें पक्का विश्वास हो गया कि सियार दमनक ने बिल्कुल सही कहा था और वे बिना सोचे-विचारे ही एक-दूसरे पर टूट पड़े.  ईरान और इजराइल के बीच इन दिनों भीषण युद्ध छिड़ा हुआ है. ईरान कहता है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों (बिजली आदि) के लिए है तो दूसरी ओर इजराइल को लगता है कि इसके बहाने ईरान परमाणु हथियार बना रहा है, जो उसके (इजराइल के) अस्तित्व को ही खतरे में डाल देंगे. मजे की बात यह है कि हम जैसी धारणा बना लेते हैं, चीजें हमें वैसी ही नजर आने लगती हैं. जैसे हम मनुष्य सांप से डरते हैं और सांप हम मनुष्यों से तथा मौका पाते ही दोनों पहले वार करना च...

मध्यम वर्ग

थी बहुत पुरानी इच्छा सैर-सपाटे की आकर्षित करते थे पहाड़, जंगल, नदियां फुर्सत ही लेकिन नहीं कभी भी मिल पाई नौकरी हमेशा करते जीवन बीत गया आना-जाना बस गांव-शहर ही लगा रहा। सोचा था जब नौकरी खत्म हो जायेगी लौटूंगा अपने गांव, संवारूंगा उसको पर नहीं शहर से कभी रिटायर हो पाया कम्बल समझा था जिसे, उसी ने भालू जैसा जकड़ लिया सेवा करना अम्मा-बाबू की सपना ही बस बना रहा। आती थी भरकर रेल गांव से रोज, मगर बीमारी से लाचार लोग ही दवा कराने आते थे हसरत होती थी उन्हें, शहर में उनका भी इक घर होता जीवन की अपनी सारी लगा जमा-पूंजी जब प्लॉट कहीं वे ले लेते, हिम्मत मेरी भी नहीं लौटने की होती। बस इसी कशमकश में ही जीवन गुजर गया सपना था जो वह सपना ही बस बना रहा सिलसिला न जाने चला आ रहा है कब से कम्बल छोटा है, सिर ढकने पर पैर उघड़ ही जाता है क्या इसी त्रासदी में ही मध्यम वर्ग हमेशा जीता है! रचनाकाल : 06-09 जून 2025

मिल-जुलकर काम करने और फरमान जारी करने का फर्क

 पिछले दिनों सोशल मीडिया पर वायरल एक ऑडियो क्लिप में तेलंगाना सोशल वेलफेयर रेजिडेंशियल एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस सोसाइटी की एक सीनियर अफसर प्रिंसिपलों को छात्रों से टॉयलेट, हॉस्टल रूम और किचन की सफाई कराने के निर्देश देती सुनाई दे रही थीं. इस पर विवाद खड़ा होने के बाद विपक्षी पार्टी बीआरएस ने जहां अफसर को हटाने की मांग कर डाली, वहीं राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने इस मामले में राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी कर रिपोर्ट मांगी. एक दूसरी खबर गुजरात के सूरत से है, जहां महेश पटेल नामक सज्जन हिंदी, अंग्रेजी और गुजराती माध्यम में ऐसा स्कूल चला रहे हैं, जहां नैतिकता सिखाई जाती है. इन स्कूलों में पढ़ने वाले 3500 बच्चों से कोई गलती होने पर शिक्षक उन्हें डांटते या मारते नहीं हैं बल्कि प्रिंसिपल खुद को सजा देते हैं. जैसे एक बार जब बच्चे गणतंत्र दिवस पर झंडा फहराने स्कूल नहीं आए तो अगले दिन से प्रिंसिपल नंगे पैर स्कूल आने लगे. यह देख बच्चे भी बिना जूतों के स्कूल आने लगे और सभी शिक्षकों से माफी मांगी. इस स्कूल में उन सभी बच्चों को प्रवेश मिल जाता है जिन्हें शरारतों और पढ़ाई में...