दहशत
सपना या हकीकत है
ये कौन सी दुनिया है?
लाशों से पटे हैैं अस्पताल
हर चेहरे पर मरने का भय
अनगिनत चिताएं सजी हुईं
धू धू कर जलते श्मशान
ये धरती जिंदा है
या मौत का साम्राज्य है?
रणक्षेत्र ये कैसा है
दिनरात ये चलती हैैं बंदूकें
या एम्बुलेन्स के सायरन
दहशत पैदा करते हैैं!
दु:स्वप्न देखता हूं
या सच में हकीकत है?
देखते हुए टीवी
या पढ़ते हुए अखबार
डर क्यों अब लगता है
आता है किसी का फोन
अनहोनी की आशंका
से मन भर उठता है।
जीने का मतलब यूं
दहशत तो कभी भी न था
ये कैसा है मौत का भय
जो कुछ को मारता है
बाकी सबको लेकिन
तिल-तिल कर लीलता है!
रचनाकाल : 15 अप्रैल 2021
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